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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित । यह बात अत्युक्तिपूर्ण नहीं किन्तु वास्तविक ही है। कुछ विचारकों का "-साधु मुनिराजों को नारी के सौन्दर्य तथा इसी प्रकार अन्य वस्तुयों के सौन्दर्य वर्णन से क्या प्रयोजन है १-" यह विचार कुछ गौरव नहीं रखता, क्योंकि वास्तविकता को प्रकट करना कोई दोषावह नहीं होता, प्रत्युत उसे छिपाना दोषाधायक हो सकता है। हां, वस्तु पर रागद्वेष करना दोष है, न कि उस का यथार्थरूप में वर्णन करना । आज के साधु की तो बात ही जाने दीजिए, परमपूज्य गणधर देवों ने भी ऐसे वर्णन किए हैं। उन्हों ने सब बातों का, फिर वे बातें चाहे नगरसौन्दर्य से सम्बन्ध रखती हों, स्त्री अथवा पुरुष के सौन्दय विषय की हों, पूरी तरह से वर्णन किया है। ___ महारानी धारिणी देवी का रात्रि के समय महाराज अदोनशत्रु के पास स्वप्न का फल पूछने के लिये अपने शयनागार से उठ कर जाना, यह सूचित करता है कि पूर्वकाल में पति पत्नी एक स्थान पर नहीं सोया करते थे। इस से तथा इसी प्रकार के शास्त्रों में वर्णित अन्य कथानकों से यह सिद्ध होता है कि उस समय प्रायः सभी लोगों की यही नीति थी, जिस से कि उन की दीर्घदर्शिता एवं विषयविरक्ति सूचित होती है। इस नीति के पालन दम्पती भी अधिकाधिक सदाचारी रहने के कारण प्राय: नीरोग रहते और उन की सन्तति भी सशक्त अथच दीर्घजीवी होती। आज इस नीति का पालन तो शायद ही कहीं पर होता हो ?, तब इस का परिणाम भी वही हो रहा है जो नीति के भंग करने से होता है । आज के स्त्री और पुरुषों का दुर्बल होना, अनेक रोगों का घर होना तथा उत्साहहीन होना मात्र इस पूर्वोक्त पवित्र नीति के उल्लंघन का ही कुपरिणाम समझना चाहिए । राजकुमार होते हुए भी सुबाहुकुमार कृषिविद्या, कपड़ा बुनना और इसी प्रकार अन्यान्य दस्तकारी के कामों को जानते थे, यह उन के ७२ कलाओं के ज्ञान से सूचित होता है। सुबाहुकुमार आज के धनी, म युवकों की भान्ति कृषि आदि धन्धों के करने में अपना अपमान नहीं समझते थे। वे जानते थे कि जीवन उतार चढ़ाव आते हैं, कभी जीवन सुखी तथा कभी दुःखी होता है । अनुकूल और प्रतिकूल दोनों तरह की स्थितिए जीवन में चलती रहती हैं, तदनुसार कभी अच्छा व्यवसाय मिल जाता है, तो कभी साधारण व्यवसाय से ही जीवन का निर्वाह करना होता है। यदि पास में कृषि आदि धन्धों का ज्ञान हो नहीं होगा, फिर भला समय पड़ने पर उन का उपयोग कैसे हो सकेगा, पाकिस्तान और हिन्दूस्थान के विभाजन के उदाहरण ने इस तथ्य को व्यवहार का रूप दे दिया है। धन के विनष्ट हो जाने के कारण जो मनुष्य अर्थसाध्य व्यवसाय नहीं कर पाये वे यदि कुछ शिल्प-दस्तकारी का काम नहीं जानते थे तो उन्हें उदरपूर्ति करनी असम्भव हो गई, परन्तु जब कि हाथ का उद्योग करने वालों ने अपने पुरुषार्थ से अपने जीवन की गाड़ी को बड़ी सुविधा के साथ चलाया और अपना भविष्य निराशापूर्ण एवं दुःखपूर्ण होने से बचा लिया। इस के अतिरिक्त कृषि आदि धन्धों का ज्ञान सांसारिक मनुष्य की स्वतन्त्रता को अक्षुण्ण बनाए रखता है और उसे आजीविकासम्बन्धी किसी भी कष्ट का भाजन नहीं बनने देता......इत्यादि विचारों से प्रेरित हुए सुबाहुकुमार ने ७२ कलाओं का शिक्षण प्राप्त किया था। ... माता पिता ने सुबाहुकुमार का विवाह उस समय किया जब कि वह पूरा युवक हो गया था। इस से बाल्यकाल का विवाह अनायास ही निषिद्ध हो जाता है तथा जो माता पिता अपनी संतान का योग्य अवस्था प्राप्त करने से पहले ही विवाह कर देते हैं वे अपनी सन्तान के हितचिन्तक नहीं किन्तु उसके अनिष्ट के सम्पादक हैं, यह भी प्रस्तुत कथासन्दर्भ से सूचित हो जाता है। सुबाहुकुमार के ५०० विवाह क्यों है, और किस लिये । यह प्रश्न विचारणीय है। जैन शास्त्रों के For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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