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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रो विपाक सूत्र-- [नवम अध्याय चिल्ला उठीं, हाय ! हाय ! महान अनर्थ हुआ, ऐसा कह कर राती, चिल्लाती एवं विलाप करती हई वे महाराज पुष्यनन्दी के पस अई और उस से इस प्रकार वालों कि हे स्वामिन् ! बडा अनर्थ हा देवो देवदत्ता ने माता श्रीदेवी को जीवन से रहित कर दिया - मार दिया । ___टीका शास्त्रों में लिखा है कि जैसे 'किम्प क वृक्ष के फल देखने में सुन्दर, खाने में मधुर और स्पर्श में सुकोमल होते हैं किन्तु उनका परिणाम वैसा सुन्दर नहीं होता अर्थात् जितना वह दर्शनादि में सुन्दर होता है, ख, लेने पर उसका परिणाम उतना ही भीषण होता है. गले के नीचे उतरते ही यह खाने वाले के प्राणों का नाश कर डालता है। सारांश यह है कि जिस प्रकार किम्पाक फल देखने में और खाने में सुन्दर तथा स्वादु होता हुआ भी भक्षण करने वाले के प्राणों का शीघ्र ही विनाश कर डालता है ठीक उसी प्रकार विषयभोगों की भी यही दशा होती है । ये प्रारम्भ में (भोगते समय) तो बड़े ही प्रिय और चित्त को आकर्षित करने वाले होते हैं परन्तु भोगने के पश्चात् इन का बडा ही भयंकर फल होता है। तात्पर्य यह है कि प्रारम्भिक काल में इन की सुन्दरता और मनोजता चित्त को बड़ी लुभाने वाली होती है और इन के आकषण का प्रभाव सांसारिक जीवों पर इतना अधिक पड़ता है कि प्राण देकर भी वे इन को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं । संसार में बड़े भी इस के लिए हुए हैं। रामायण और महाभारत जैसे महान् युद्धों का कारण भी यही है । ये छोटे बड़े और सभी को सताते हैं । मनुष्य, पशु पक्षी यहां तक कि देव भी कोई बचा नहीं है। भतृहरि ने वैराग्य शतक में एक स्थान पर लिखा है कि निबल, काणा. लंगड़ा पूछरहित, जिस के घांवों से राध बह रही है, जिस के शरीर में कीड़े बिलबिल कर रहे हैं, जो बूढा तथा भूखा है. जिस के गले में मिट्टी के बर्तन का घेरा पड़ा हुआ है, ऐसा कुत्ता भी काम के वशीभूत हो कर भटकता है। जब भूखे प्यासे और बूढ़े तथा दुर्बल घाबों से युक्त कुत्ते की यह दशा है, तो दूध मलाई मावा मिष्टान्न उडाने वाले मनुष्यों की क्या दशा होगी । वास्तव में काम का आकर्षण है हो ऐसा, परन्तु यह कभी नहीं भूल जाना चाहिये कि यह आकषण पैनी छुरी पर लगे हुए शहद के आकर्षण से भी अधिक भीषण है। यही कारण है कि शास्त्रों में किम्पाक फल से इसे उपमा दी गई है। ___ जीवन की कड़ी साधनायों से गुज़रने वाले भारत के स्वनामधन्य महामहिम महापुरुषों ने बड़े प्रबल शब्दों में यह बात कही है कि वासनाए उपभोग से न तो शान्त होतो हैं और न कम, किन्तु उन से इच्छा में और अधिक वृद्धि होती है ! कामी पुरुष कामभोगों में जितना अधिक प्रासक होगा, उतनी ही उस की लालसा बढ़ती चली जाएगी। विषयभोगों के उपभोग से वासना के उपशान्त होने की सोचना निरी मूर्खता है । विषय भोगो से उस में प्रगति तो होती है, ह्रास नहीं जिस प्रकार प्रदीप्त हुई अग्नज्वाला घृत के प्रक्षेप से वृद्धि को प्राप्त होती है, उसी भांन्ति कामभोग के अधिक सेवन करने से कामवासना निरन्तर बढती चली जाती है, घटती नहीं विपरीत इस के कई एक विवेकविकल प्राणी एक मात्र कामवासना से वासित होकर निरन्तर कामभोगों के सेवन में लगे हुए कामवसना की पति के स्वप्न देखते हैं और उस के लिये विविध प्रकार के आयास उठाते हैं. परन्तु उससे वासना तो क्या शान्त होनी थी प्रत्युत उस के सेवन से वे ही शान्त हो जाते हैं, तभी तो कहा है - भोगा न भुक्ता, वयमेव भुक्ताः । . १-जहा किम्पागफलाणं, परिणामो न सुन्दरी। ___एवं भुत्ताणं भोगाणं, परिणामो न सुन्दरो ॥ (उत्तराध्ययन सू० अ० १९/१८) (२) कृतः काणः खंजः श्रवणरहितः पुच्छविकलो , प्रणी पूयक्लिन्नः कृमिकुलशतैरावृततनुः । क्षुधातामो जीर्णः पिठरजकपालार्पितगलः , शुनीमन्वेति श्वा हतमपि च हन्त्येव मदनः ॥ (वैराग्यशतक, श्लोक १८) (३) न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति । हविषा कृष्णवमेव भूय एवाभिवर्धते ॥ For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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