SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 595
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [५०७ टीका - जिस तरह एक क्षुधातुर व्यक्ति क्षुधा दूर करने के साधनों को ढूंढता है और प्रयत्न करने से उनके मिल जाने पर परम आनन्द को प्राप्त होता है तथा अपने को बड़ा पुण्यशाली मानता है, ठीक उसी प्रकार महाराज वैश्रमण भी परम सुन्दरी और परमगुणवती कुमारी देवदत्ता को अपनी पुत्रवधू बनाने की चिन्ता से व्याकुल थे, परन्तु अन्तरंग पुरुषों से " - देवदत्ता के पिता सेठ दत्त ने राजकुमार पुष्यनन्दी को अपना जामाता बनाना स्वीकार कर लिया है - " यह सूचना प्राप्त कर, क्षुधातुर व्यक्ति को पर्याप्त भोजन मिल जाने पर जितने श्रानन्द का अनुभव होता है, उस से भी कहीं अधिक आनन्द का अनुभव उन्हों ने किया । वे अपनी भावी पुत्रवधू देवदत्ता के मोहक रूपलावण्य का ध्यान करते हुए पुलकित हो उठे । तदनन्तर वे अपने यहां विवाह की तैयारी का आयोजन करने में व्यस्त हो गये । 1 इधर सेठ दत्त को भी हर्षातिरेक से निद्रा नहीं आती, जब से उसकी पुत्री कुमारी देवदत्ता के सम्बन्ध का महाराज वैश्रमणदत्त के राजकुमार पुष्यनन्दी से होना निश्चित हुआ, तब से वे फूले नहीं समाते । मेरी पुत्री देवदत्ता सेठानी न बन कर रानी, नहीं २ पट्टरानी बनेगी, यह कितने गौरव की बात है ?, उसे युवराज पुष्यनन्दी जैसा वर मिले, निस्सन्देह यह उसका अहोभाग्य है । उस का इस से अधिक सद्भाग्य क्या हो सकता है कि उसे महाराज वैश्रमण के सुन्दर और सर्वगुण सम्पन्न राजकुमार जैसे सुयोग्य वर की प्राप्ति का अवसर मिला १, अस्तु, जहां तक बने इस का जल्दी ही विवाह कर देना चाहिये, कारण कि इस सम्बन्ध में कोई दग्धहृदय बाधा न डाल दे तथा अपनी लड़की देवदत्ता भी अत्र विवाह योग्य हो गई है. और विवाहयोग्य होने पर लड़की को घर में रखना भी कोई बुद्धिमत्ता नहीं है, तथा ऐसी अवस्था में उस का सुसराल में अपने पति के पास रहना ही श्रेयस्कर है, इत्यादि सोच विचार करने के अनन्तर अपनी भार्या कृष्णश्री की अनुमति ले कर शुभ तिथि; करण, दिवस, नक्षत्र और शुभ मुहूर्त में देवदत्ता के विवाह का कार्य आरम्भ कर दिया । सत्र से प्रथम उसने नाना प्रकार की भोज्य तथा खाद्य सामग्री एकत्रित कराई, तथा अपने मित्रों ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों और परिजनों को आमंत्रित किया । उन के आने पर उन सब का उचित स्वागत किया और विविध प्रकार से तैयार किये गये भोज्य पदार्थों को प्रस्तुत करके उन के साथ सहसंमिलित हुअर्थात् अपने सभी मित्र श्रादि के साथ बैठ कर प्रीतिभोजन किया । तदनन्तर सब के उचित स्थान पर एकत्रित हो जाने पर विपुल वस्त्र. पुष्प और गंध तथा माला अलंकारादि से उन सब का यथोचित सत्कार किया । इस प्रकार विवाह के पूर्व होने वाला सहभोजन या प्रीतिभोजन आदि कार्य सम्पूर्ण हुआ । तदनन्तर कुमारी देवदत्ता को स्नान करा यावत् वस्त्रभूषाणादि से अलंकृत करके हज़ार आदमियों से उठाई जाने वाली एक सुन्दर पालकी में बिठा कर अपने अनेक मित्रों, ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों एवं परिजनों को साथ ले कर बड़े समारोह के साथ दत्त सेठ ने महाराज वैश्रमनदत्त के राजमहल की ओर प्रस्थान किया और वहां जाकर महाराज को बधाई दी और देवदत्ता को उन के अर्पण कर दिया । महाराज वैश्रमणदत्त परम सुन्दरी कुमारी दवदत्ता को देख कर बड़े प्रसन्न हुए । उन्हों ने भी अपने मित्रों ज्ञातिजनों, निजकजनों, स्वजनों, सम्बन्धिजनों और परिजनों को बुला कर उन्हें विविध प्रकार के भोजनों तथा गंध, पुष्प और वस्त्रालंकारादि से सत्कृत किया । तदनन्तर वर कन्या दोनों का अभिषेक करा और उत्तम वस्त्राभूषणों से अलंकृत कर अग्निहोम कराया और विधिपूर्वक बड़ी धूमधाम के साथ उन का पाणि(१) चन्द्रकला से युक्त काल अथवा चान्द्र दिवस तिथि कहलाता है । ज्योतिषशास्त्र में प्रसिद्ध, aa बालव आदि ग्यारह की करण संज्ञा है । ज्योतिषशास्त्र में वर्णित दोषों से रहित दिन दिवस शब्द से ग्राह्य है । ज्योतिषशास्त्र विहित - अश्वनी, भरणी आदि २८ नक्षत्रों का नक्षत्र पद से ग्रहण होता है । दो घड़ी (४८ मिन्ट) समय अथवा ७७ लवों या ३७७३७ श्वासोच्छ्वासपरिमित काल मुहूर्त कहा जाता I For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy