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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [५०५ उववडावेति २-तैयार कराता है, तैयार करा कर । मित्तनाति-मित्र और ज्ञातिजन आदि को' आमतेति -आमंत्रित करता है - बुनाता है । राहाते-स्नान कर । जाव-यावत् । पायच्छित्त-दुष्ट स्वप्नादि के फल को विफल करने के लिये मस्तक पर तिलक एवं अन्य मांगलिक कार्य कर के । सुहासणवरगते-सुखासन पर स्थित हो । तेणं -उस । मित्त० -मित्र, ज्ञाति, परिजन आदि के । सद्धि-साथ । संपरिडे-संपरिवृत -घिरा हुआ। तं-उस । विउलं-विपुल-महान् । असणं ४-अशनादिक चतविध आहार का । श्रासादेमाणे ४-प्रास्वादनादि करता हुआ। विहरति-विहरण करता है । 'जिमियभुत्त - त्तरागते-भोजन के अनन्तर वह उचित स्थान पर आया। आयंते ३-आचान्त-आचमन किए हुए, चोक्षमुखगत लेपादि को दूर किये हुए, अत:एव परम शुचिभूत-परम शुद्ध हुआ वह । तं- उस । मित्तणाइo-मि तथा ज्ञातिजन आदि का । विउलेणं - विपुल । पुष्कवत्थगंधमल्लाजकारेणं-पुष्प, वस्त्र, गंध, माला और अलंकार से । सक्कारेति २-सत्कार करता है, करके । सम्माणेइ २-सम्मान करता है, करके । देवदत्त-देवदत्ता। दारियं-बालिका को । राहायं - स्नान । जाव-यावत् । विभूसियसरोरं- समस्त आभूषणों द्वारा शरीर को विभूषित कर । पुरिसस इस्स बाहिणिं-पुरुषसहस्रवाहिनी-हज़ार पुरुषों से उठाई जाने वाली । सीय - शिविका-पालकी में · दुरूहेति २-आरूढ कराता है -बिठलाता है, बिठा कर । बहुमित्त०-बहुत से मित्र । जाव - यावत् ज्ञातिजनादि के । सद्धि-साथ । संपरिखुडे - संपरिवृत-घिरा हुआ । सविड्ढीए - सर्व प्रकार की वृद्धि से । जाव -यावत् । नाइयरवेणं -नादितध्वनि से-बाजे गाजों के साथ । रोहोडयं-रोहीतक । णगरं-नगर के । मज्झमज्झेणं-बीचों बीच । जेणेव-जहां । वेसमणरगणो-महाराज वश्रमण राजा का । गिहे-घर था, और । जेणेव -- जहां पर । वेसमणे-वैश्रमण। राया - राजा था। तेणेव-वहीं पर । उवागच्छति २- प्राजाता है, अाकर । करयल० - हाथ जोड़ । जावयावत् । वद्धावेति २-वधाई देता है, वधाई दे कर । वेसतण राणो-वैश्रमणदत्त राजा को। देवदत्तंदेवदत्ता। दारियं -दारिका को। उव ऐति - अर्पण कर देता है । तते णं - तदनन्तर । से - वह। वेसमणे-वैश्रमण । राया-राजा । उवणोतं- लाई हुई। देवदत्त-देवदत्ता । दारियं-दारिका- बालिका को। पासिता -देख कर । हतु-प्रसन्न होता हुआ । विरलं-विपुल । असणं ४-अशनादि को : उपक्वडावेति २-तैयार कराता है, तैयार करा कर । मितनाति०-मित्र तथा ज्ञातिजन आदि को । आमंतेति -आमंत्रित करता है । जाव -यावत् । सक्कारेति २ - सत्कार करता है, करके । सम्माणेइ २ - सम्मान करता है, करके। पूसणंदिकुमारं - कुमार पुष्यनन्दी । देवदेत्तं दारियं च -और देवदत्ता बालिका को । पय-पट्टक अर्थात् फलक पर । दुरूहेति २-बिठलाता है, विठला कर । सेयपोतेहिं-श्वेत और पीत - सफेद और पीले । कलसेहि-कलशों से । मज्जावेति २--स्नान कराता है, स्नान कराने के अनन्तर । वरनेत्रत्याइं करेति २-उन को सुन्दर वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत किया, करके । अग्गिहोम-अग्निहोम - हवन । करेति -करता है, तदनन्तर । पूस पदिकुमारं-कुमार पुष्यनन्दो को। देवदत्तार- देवदत्ता का । पाणिं - हाथ । गिराहावेति - ग्रहण कराता है । तते णं - तदनन्तर । से --वह । वेसमणेदत्तो - वेश्रमण दत्त । राया-राजा । पूसणं दिस्स-पुष्यनन्दी । कुमारस्स -कुमार को, तथा । देवदत्तार-देवदत्ता को । सविहोर-सर्व ऋद्धि । जात्र-यावत् । रवेणं-वादित्रादि के शब्द से । महया -महान् । इहित नाराए । -ऋद्वे - व त्रालंकारादि सम्पत्ति अोर सत्कार -सम्मान के समुदाय - महानता से । पानिमा इणं -पाणिग्रहण -विवाह संस्कार । कारवेति-कराता है, विवाह करा कर अर्थात् उक्त विधि से (१) इस पद का अथ पृष्ठ २२१ पर लिखा जा चुका है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां यह स्त्रियों का विशेषण है, जब कि प्रस्तुत में एक पुरुष का । - For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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