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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [४८५ --- वा जीविया ववरोवित्तर, एवं संपेर्हेति संपेहित्ता ममं अन्तराणि य छिद्दाणि य विहराणि य पडिजांगरमाणीओ विहरन्ति तं न नज्जइ गं सामी ! ममं केणइ कुमारेणं मारिस्संति त्ति कट्ट भीया ४ झियामि । तते गं से सीइसेणे राया सामं देवि एवं वयासी मा गं तुमं देवा ! हतमणसंकप्पा जाव झियाहि, श्रहं गं तहा जतिहामि जहा णं तव नत्थि कत्तो वि सरीरस्स आवाहे वा पवाहे वा भविस्सति, त्ति कट्ट ताहिं इट्ठाहि जाव समासासेति, ततो पडनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता कोडु बियपुरिसे सहावेति सदावित्ता एवं वयासीच्हणं तुभेदेवापिया ! सुबहट्ठस्स नगस्स बहिया एगं महं कूडागारसालं करेह - गखं भमयसंनिविट्ठ ं जाव पासाइयं ४ एयपड्डु पच्चप्पियह । तते गं ते कोड बियपुरिसा करतल० जाव पडसुर्णेति पडिणित्ता सुपइडियनगरस्स बहिया पच्चत्थिमे दिसिभागे गं महं कूडागारसाल करेंति अगखंभसयसंनिविट्ठ जान पासाइयं ४ जेणेव सीह सेणे राया तेणेव उवागच्छन्ति उवागच्छित्ता तमाणत्तियं पच्चप्पियंति । 1 पदार्थ - तते गं - तदनन्तर । से- वह । सिंहसेणे - सिंहसेन । राया - राजा । इमीसे- इस कहाए - वृत्तान्त से । लद्धट्ठ े समाणे - लब्धार्थ हुआ अर्थात् अवगत हुआ । जेणेव - जहां । कोवघर - कोपगृह था, और । जेणेव - जहां। सामा देवी - श्यामा देवी थी। तेणेव - वहां पर । उत्रागच्छइ उवागच्छिता - आता है, कर । सामं - श्यामा | देवि - देवी को, जो कि । श्रहमण संकप्पं- अपहृतमन: - संकल्पा – जिस के मानसिक संकल्प विफल होगये हैं, को । जाव यावत् । पासति पासिता देखता है, देख कर । एवं - इस प्रकार । वयासी कहता है । देवाप्पिए ! - हे महाभागे ! । तुमं- तुम । किराणंक्यों । श्रोहयमण संकप्पा - मानसिक संकल्पों को निष्फल किये हुए जाव - यावत् । भियासि विचार कर रही हो ? । तते णं तदनन्तर । सा- वह । सामादेवी - श्यामा देवी । सीह सेणेणं - सिंहसेन । र राणा - राजा के द्वारा । एवं - इस प्रकार । वृत्ता समाणा - कही हुई । उफेणउफेणियं दूध के उफान के समान क्रुद्ध हुई अर्थात् क्रोधयुक्त प्रबल वचनों से । सीहरायें - सिंहराज के प्रति । एवं वयासी - इस प्रकार बोली । एवं खलु - इस प्रकार निश्चय ही । सामी ! - हे स्वामिन् ! । ममं - मेरी । एक्कू गाणं - कम | पंचराई सत्तोस पाणं - पांच सौ सपत्नियों की । एक्कूणगाई - - एक कम पंच-पांच । माइसयाई सौ माताएं | इमीसे- इस | कहाए – कथा – वृत्तान्त से । लट्ठाई समाणाई - लब्धार्थ हुई - अवगत हुई। अन्न एक दूसरे को । सार्वोति सदावित्ता-बुलाती हैं, बुलाकर एवं वयासी - इस प्रकार कहती हैं । एवं खलु - इस प्रकार निश्चय ही । सीहसेणे - सिंहसेन । राया- राजा । सामाएश्यामा | देवीए - देवी में । मूच्छिते ४ – मूच्छित, गृद्ध, ग्रथित और अभ्युपपन्न हुआ । श्रहं - हमारी धूयाश्रो - पुत्रियों का । गो आहार - आदर नहीं करता । नो परिजाणाइ - ध्यान नहीं रखता । श्रणाढा - यमाणे - आदर न करता हुआ । अपरिजाणमाणे - ध्यान न रखता हुआ । विहरइ - विहरण करता है । तं – इस लिये । सेयं -श्रेय - योग्य है । खलु निश्चयार्थक है । श्रहं हमें । सामं -- श्यामा | देवि-देवी पण वा अग्नि के प्रयोग से । विसप्पोगेण वा -- विष के प्रयोग से । सत्थपत्रोगेण वा - एक 1 + को। 1 (१) मूर्च्छित आदि पदों का अर्थ पृष्ठ ४८० पर पदार्थ में लिखा जा चुका है । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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