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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवम अध्याय] हिन्दी भाषा टीका सहित। वेदनाओं का उपभोग कर रही है , इतना निवेदन करने के बाद अनगार गौतम स्वामी भगवान् महावीर स्वामी से उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे । ___"-उखेवो-” इस पद का अर्थ होता है-प्रस्तावना । अर्थात् प्रस्तावना को सूचित करने के लिये सूत्रकार ने “-उखेवो-" इस पद का प्रयोग किया है । प्रस्तावनारूप सूत्रांश निम्नोक्त है ___"-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं अट्ठमस्स अझयणस्स अयमढे पराणत्ते, गावमस्त णं भंते ! अज्झय गस्त दुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पराणत्ते? -अर्थात् यदि भगवन् ! यावत् मोक्षसंप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुःख विपाक के अष्टम अध्ययन का यह (पूर्वोक) अर्थ बतलाया है तो उन्होंने दुःखविपाक के नवम अध्ययन का क्या अर्थ फरमाया है ? -रिद्ध. -तथा - अडढे० - यहां के बिन्दु से अभिमत पाठ की सूचना क्रमश: पृष्ठ १३८ तथा १२० पर दी गई है । तथा-अहीण. जाव उक्किसरीरा-यहां पठिन जाव-यावत् पद पृष्ठ १०५ के टिप्पण में पढ़े गये -पडिपुराणपंचिदियसरीरा-से ले कर-पियदसणा सुरूवा-यहां तक के पदों का, तथा पृष्ठ ३०७ पर पढ़े गये –उम्मुक्कवालभावा-से ले कर-लावराणेण य उक्किहायहां तक के पदों का बोधक है । तथा-समोसढे जाव गो-यहां के-जाव- यावत्- पद से संगृहीत पद पृष्ठ ४३१ पर लिख दिये गये हैं । तथा-तहेव जाव रायमगं-यहां पठित-तहेवपद उसी भांति अर्थात् जिस तरह पहले वर्णित अध्ययनों में वर्णन कर आये हैं, उसी तरह प्रस्तुत में भी समझना चाहिये, तथा उसी वर्णन का संसूचक जाव-यावत् पद है । जाव-यावत् पद से अभिमत पाठ पृष्ठ २०७ पर लिखा जा चुका है । अन्तर मात्र इतना है कि प्रस्तुत में रोहीतक नामक नगर का उल्लेख है, जब कि वहां पुरिमताल नगर का । शेष वर्णन समान ही है । -उक्खित्तकराणनासं जाव सूले-यहां पठित जात्र-यावत् पद पृष्ठ १२३ पर लिखे गए -नेहत प्पियगत्तवज्झकरकडिजयनियत्थं-इत्यादि पदों का परिचायक है। अन्तर मात्र इतना है कि वहां एक पुरुष का वर्णन है जब कि प्रस्तुत में एक स्त्री का । अर्थगत कोई भेद नहीं है । तथा-अज्झथिए ५- यहां के अंक से अपेक्षित पद पृष्ठ १३३ पर लिखे जा चुके है । -तहेव णिग्गते जाव एवं वयासी- यहां पठित - तहेव-तथा-जाव- यावत् - पद पृष्ठ २१० पर पढे गए-ग्रहोणं इमे परिसे पुरा पुराणाणं-से ले कर - महावीरं वन्दति नमसति २-इन पदों का तथा पृष्ठ २११ पर पढ़े गये -तुब्भेहिं अब्भणुए गाए समाणे-से ले कर- वेएणं वेएति- यहां तक के पदों का परिचायक है । अन्तर मात्र इतना है कि वहां पुरिमताल नगर ओर उस के राजमार्ग पर भगवान् गौतम ने एक वध्य पुरुष के दयनीय दृश्य को देखा था, और वह दृश्य भगवान् को सुनाया था, जब कि प्रस्तुत में रोहीतक नगर है और उसके राजमार्ग पर एक स्त्री के दयनीय दृश्य को उन्होंने देखा और वह दृश्य भगवान् को सुनाया । अर्थात् दृश्यवर्णक पाठ भिन्न होने के अतिरिक्त शेष वर्णन समान ही है । अब सूत्रकार भगवान् महावीर स्वामी द्वारा दिये गये उत्तर का वर्णन करते हुए कहते हैं - मूल-'एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं सपएणं इहेव जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे (१) एव खलु गौतम ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे सुप्रतिष्ठ नाम नगरमभूद्, ऋद्ध । महासेनो राजा । तस्य महासेनस्य धारिणीप्रमुखं देवीसहस्रमवरोधे चाप्यभूत् । तस्य महासेनस्य पुत्रो धारिण्या देव्या आत्मजः सिंहसेनो नाम कुमारोऽभूहीन० युवराजः । ततस्तस्य सिंहसेनस्य For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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