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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [४६७ मूलार्थ-नवम अध्ययन के उत्क्षेप-प्रस्तावना की कल्पना पूर्व की भान्ति कर लेनी चाहिये । हे जम्बू ! उस काल और उस समय में रोहीतक नाम का ऋद्ध, स्तिमित और समृद्ध नगर था। वहा प्रथिव्यवतंपक नाम का एक उद्यान था. उस में धरण नामक यक्ष का एक आयतन-स्थान था। वहां वें श्रमणदत्त नाम राजा का राज्य था। उसकी श्रीदेवी नाम की रानी थी, उसके युवराज पद से अलंकृत पच्यनन्दी नाम का कुमार था। उस नगर में दत्त : का एक गाथापति रहता था. जोकि बडा धनी यावत अपनी जाति में बडा सम्माननीय था। उस की कृष्णश्री नाम की भार्या थी। इन के अन्यून एवं निर्दोष पांच इन्द्रियों से युक्त उत्कृष्ट शरीर वाली देवदत्ता नाम की एक बालिका-कन्या थी। उस काल और उस समय पृथिव्यवतंसक नामक उद्यान में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे, यावत् उनकी धर्मदेशना सुन कर परिषद् और राजा सब वापिस चले गये । उस समय भगवान् के ज्येष्ठ शिष्य गौतम स्वामी षष्ठमण-बेले के पारणे के लिए भिक्षार्थ गये यावद् राजमार्ग में पधारे, वहां पर वे हस्ति गों, अश्वों और पुरुषों को देखते हैं और उनके मध्य में उन्हों ने अवकोटक बन्धन से बन्धी हुई, कटे हुए कर्ण तथा नाक वाली यावत् सूली पर भेदी जाने वाली' एक स्त्री को देखा देख कर उन के मन में यह संकल्प उत्पन्न हुआ यावत् पहले की भान्ति भिक्षा लेकर नगर से निकले और भगवान के पास आकर इस प्रकार निवेदन करने लगे कि भदन्त ! यह स्त्री पूर्व भव में कौन थी।। टीका-संख्याबद्धकम से अष्टम अध्ययन के अनन्तर नवम अध्ययन का स्थान आता है । नवम अध्ययन में राजपत्नी देवदत्ता का जीवनवृत्तान्त वर्णित हुआ है । नवम अध्ययन को सुनने की अभिलाषा से चम्पा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य - उद्यान में विराजमान आर्य सुधर्मा स्वामी के प्रधान शिष्य श्री जम्बू स्वामी उन से विनयपूर्वक इस प्रकार निवेदन करते हैं - वन्दनीय गुरुदेव ! आप श्री के परम अनुग्रह से मैंने दु:खविपाक के अष्टम अध्ययन का अर्थ तो सुन लिया और उस का यथाशक्ति मनन भी कर लिया है, परन्तु अब मेरी उसके · दुःखविपाक के नवम अध्ययन के अर्थ को श्रवण करने की भी अभिलाषा हो रही है, ताकि यह भी पता लगे कि यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उस में किस व्यक्ति के किस प्रकार के जीवनवृत्तांत का वर्णन किया है , इस लिये आप नवम अध्ययन का अर्थ सुनाने की भी अवश्य कृपा करें ? तब जम्बू स्वामी की इस विनीत प्रार्थना को मान देते हुए श्री सुधर्मा स्वामी इस प्रकार फरमाने लगे कि हे जम्बू! भव्याम्भोजदिवाकर श्रमण भगवान महावीर स्वामी एक बार रोहीतक नाम नगर में पधारे और नगर के बाहिर वे पृथिव्यवतंसक नामक उद्यान में विराजमान होगये । उस उद्यान में धरण नामक यक्ष का एक यक्षायतन -स्थान था, जिस के कारण उद्यान की अधिक (१) वैयाकरणों के "- वर्तमान के समीपवर्ती भविष्यत् और भूतकाल में भी वर्तमान के समान प्रत्यय होते हैं - " इस सिद्धान्त से "भिद्यमानां में वर्तमानकालिक प्रत्यय होने पर भी अर्थ भविष्य का-भेदन किये जाने वाली-यह होगा । इस भाव का बोध कराने वाला व्याकरणसूत्र सिद्धान्तकौमुदी में वर्तमानसामीप्ये वर्तमानवद्वा । ३/३/१३१/ इस प्रकार है, तथा प्राचार्यप्रवर श्री हेमचन्द्र सूरि अपने हैमशब्दानुशासन में इसे -सत्सामीप्ये सद्वद्वा । ५/४/१। इस सूत्र से अभिव्यक करते हैं। अर्थ स्पष्ट ही है। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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