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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir नवम अध्याय] हिन्दी भाषा टोका सहित । [ ४६५ ५- ब्रह्मचारी पत्थर की या अन्य ईंट आदि की दीवारों के भीतर से तथा वस्त्र के परदे के भीतर से आने वाले स्त्रियों के कूजित शब्द ( सुरत समय में किया गया अव्यक्त शन्द ), रुदित शब्द (प्रेमिश्रित रोष से रतिकलहादि में किया गया शब्द ), गीत शब्द (प्रमोद में आकर स्वरतालपूर्वक किया गया शन्द ), हास्य शब्द और स्तनित शब्द ( रतिसुख के आधिक्य से होने वाला शब्द ) एवं क्रन्दित शब्द ( भर्ता के रोष तथा प्रकृति के ठीक न होने से किया गया शोकपूर्ण शब्द) भी न सुने । ६-ब्रह्मचारी पूर्वरति (स्त्री के साथ किया गया पूर्व संभोग ) तथा अन्य पूर्व की गई कामक्रीड़ाओं का स्मरण न करे । ७- ब्रह्मचारी पौष्टिक - पुष्टिकारक एवं धातुवर्धक आहार का ग्रहण न करे। ८-ब्रह्मचारी प्रमाण से अधिक आहार तथा जल का सेवन न करे। -ब्रह्मचारी अपने शरीर को विभूषित न करे, प्रत्युत अधिकाधिक सादगी से जीवन व्यतीत करे। १०- ब्रह्मचारी कामोत्पादक शब्द, स्त्री आदि के रूप, मधुर तथा अम्लादि रस और सुरभि-सुगन्ध और सुकोमल स्पर्श अर्थात् पांचों इन्द्रियों के पांचों विषयों में आसक्त न होने पावे।। इन दश नियमों के सम्यग अनुष्ठान से ब्रह्मचर्य व्रत का पूरा २ संरक्षण हो सकता है। इस के अतिरिक्त शास्त्रों में ब्रह्मचर्य को सुदृढ 'जहाज़ के तुल्य बतलाया गया है। जिस तरह जहाज यात्री को समुद्र में से पार कर किनारे लगा देता है, उसी तरह ब्रह्मचर्य भी साधक को संसार समुद्र से पार कर उसके अभीष्ट स्थान पर पहँचा देता है. इस लिये प्रत्येक मुमुक्ष पुरुष द्वारा ब्रह्मचर्य जैसे महान व्रत को सम्यगतया अपनाने का यत्न करना चाहिये, इसके विपरीत जो जीव ब्रह्मचर्य का पालन न कर केवल मैथुनसेवी बने रहते हैं, तथा उस के लिये उपयुक्त साधनों को एकत्रित करने में अनेक प्रकार के कर कर्म करते हैं, वे अपनी आत्मा को मलिन करते अथच चतुर्गतिरूप संसार - सागर में गोते खाते हैं, तथा नाना प्रकार के दुःखों का अनुभव करते हैं। प्रस्तुत नवम अध्ययन में ब्रह्मचर्य से पराङमुख रहने वाले विषयासक्त एक कामी नारीजीवन का वृत्तान्त वर्णित हुआ है, जो विषयवासनायों का अधिकाधिक उपभोग करने के लिए अपनी सास के जीवन का भी अन्त कर देता है, इसके अतिरिक्त साथ में एक पुरुषजीवन का भी वर्णन उपस्थित किया गया है जो मथुन का पुजारी बन कर तथा एक स्त्री पर आसक्त होकर १९९ स्त्रियों को आग में जला देता है, उस नवम अध्ययन का आदिम सूत्र निम्नोक्त है.मूल-उक्खेवो णवपस्स । एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेण समएणं रोहीडए (१) समुद्रतरणे यद्दपायो नौः प्रकीर्तिता । संसारतरणे तद्वद् , ब्रह्मचर्य प्रकीर्तितम् ।। (२) छाया -उत्क्षेपो नवमस्य । एवं खलु जम्बूः ! तस्मिन् काले तस्मिन् समये रोहीतकं नाम नगरमभूद् , अद०, पृथिव्यवतंसकमुद्यानम् । धरणो यक्षः । वैश्रमणदत्तो राजा । श्रीदेवी । पुष्यनन्दी कुमारो युवराजः । तत्र रोहीतके नगरे दत्तो नाम गाथापति: परिवसति, प्रायः । कृष्णश्री भार्या । तस्य दत्तस्य दुहिता कृष्णश्रियः आत्मना देवदत्ता नाम दारिका अभूदहीन० यावदुत्कृष्टशरीरा । तस्मिन् काले तस्मिन् समये स्वामी समवसृतो, यावद् गतः । तस्मिन् काले तस्मिन् समये ज्येष्ठोऽन्तेवासी षष्ठक्षमणपारणके तथैव यावद राजमार्गमवगाढो हस्तिन:, अश्वान् , पुरुषान् पश्यति । तेषां पुरुषाणां मध्यगतां पश्यत्येकां स्त्रियमवकोटकबन्धनामुत्कृत्तकर्णनासा यावच्छूले भिद्यमानां पश्यति दृष्टा अयमाध्यात्मिकः ५ समुत्पन्नस्तथैव निर्गतो यावदेवमवादीत् - एषा भदन्त ! स्त्री पूर्वभवे का आसीत् ।। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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