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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir सप्तम अध्याय] हिन्दी भाषा टीका सहित [४२५ वन्दे ने तो जब से जग में कुछ २ होश संभाला है, माता और बहिन सम परनारी को देखा भाला है। मुझ से तो यह स्वप्नतलक में भी आशा मत रखिएगा, तैल नहीं है इस तिलतुष में चाहे कुछ भी करिएगा। स्वत: स्वर्ग से इन्द्राणी भी पतित बनाने श्राजाए, तो भी वज्र मूर्ति सा मेरा मनमेरु न डिगा पाए । पापकर्म के फल से मैं तो हरदम ही भय खाता है, और तुम्हें भी माता जी बस यही भाव समझाता है । (धर्मवीर सुदर्शन में से) सेठ सुदर्शन के उत्तर को सुनकर अभया भड़क उठी, उसने उन को बहुत बुरा भला कहा और अन्त में सेठ सुदर्शन को दण्डित करने के लिये तथा राजा और जनता के सन्मुख अपने आप को सती साध्वी एवं पतिव्रता प्रमाणित करने के लिए उस की ओर से त्रियाचरित्र का भी पूरा २ प्रदर्शन किया गया। परिणाम यह हुआ कि चम्पानरेश अभया के त्रिया चरित्र के जाल में फंस गए और उन्हों ने सेठ जी को शूली पर चढ़ाने का हुक्म दे दिया, परन्तु सेठ सुदर्शन गिरिराज हिमाचल से भी दृढ़ बने हुए थे अत: शूली पर चढ़ते हुए भी सद्भावों के झूले में बड़ी मस्ती में झूल रहे थे । इन्हें कर्तव्य के पालन में आने वाली मृत्यु, मृत्यु नहीं, प्रत्युत मोक्षपुरी की सीढ़ी दिखाई देती थी, इसी लिए वहां पर भी इन का मानस कम्पित नहीं हो पाया। प्राणहारिणी तीक्ष्ण अणी पर सेठ जब वारूढ़ होने लगे ही थे कि तब धर्म के प्रभाव से पल भर में वहां का दृश्य ही बदल गया । लोहशूली के स्थान पर स्वर्णस्तम्भ पर रत्नकान्तिमय सिंहासन दृष्टिगोचर होने लगा। सेठ सुदर्शन उस पर अनुपम शोभा पाने लगे। चम्पानरेश तथा नागरिक उन के चरणों में शीस झुकाने लगे. और देवतागण उन पर पुष्पवर्षा करने लगे। इधर महाराणी अभया ने जब शली को सिंहासन में बदल जाने की बात सुनी तो वह काम्प उठी, सन्न सी रह गई, उस की आंखों से जलधारा बहने लगी, उस का मस्तक चक्र खाने लगा, वह अपने किए पर पछताने लगी कि यदि मैं समझ से काम लेती तो क्यों आज मेरा यह बुरा हाल होता ?, विषय वासना में अन्धी हुई मैंने व्यर्थ में ही सेठ जी को कलंकित किया, पता नहीं राजा मुझे कैसे मारेगा ?, हाय ! हाय !!, क्या करू?. किधर जाऊं १, - इस प्रकार रोने कल्पने और विलाप करने लगी, तथा अन्त में छत्त के साथ रस्सी बान्धकर गल में फांसी लगा कर उसने अपने जीवन का अन्त कर लिया। अभया की आत्महत्या का घृणित वृत्तान्त चम्पा नगरी के घर २ में फैल गया और सर्वत्र उस पर निन्दा एवं पूणा का धूलिप्रक्षेप होने लगा। ___ ऊपर के उदाहरण से कवि का भाव स्पष्ट हो जाता है । अतः जो व्यक्ति सेठ सुदर्शन की तरह किसी भी काम को सोच समझ कर करता है तो उस पर फलों की वर्षा होती है अर्थात उस का सर्वत्र मान होता है और जो अभया राणी को भांति बिना समझे और बिना सोचे कोई काम करेगा तो उस पर धूलिप्रक्षेप होगा अर्थात् उस का सर्वत्र अपवाद होगा, और वह प्रस्तुत अध्ययन में वर्णित धन्वन्तरि वैद्य की भांति दुर्गतियों में नानाप्रकार के दुःखों का उपभोग करने के साथ २ जन्म मरण के प्रवाह में प्रवाहित होता रहेगा। ॥ सप्तम अध्ययन समाप्त ॥ For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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