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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३७६ ] श्री विपाक सूत्र - [ सप्तम अध्याय एगं पुरिसं कच्छुल्लं कोढियं दायरियं भगंदरियं अरिसिल्लं कासिल्लं सामिल्लं मोसिल्लं सूयमुहं सूत्थं सूपायं सांडयहत्थंगुलियं सडियपायंगुलियं सांडयकरण ना सयं रसियाए य पूरणय थिविथिवतं वणमुहकिमिउत्तयं तपगलं तपूयरु हिरं लालापगलं तक एणना सं अभिक्खणं २ पूयकवले य रुहिरकवले य किमिकवले य वममाणं कट्ठाई कलुगाई वीसाईं कूयमाणं मच्छियाचडगरपहगरेणं णिज्जमाणमग्गं फुट्टहडाहडसीसं दंडिखंडवसणं खंड मल्लयखंडघड़गहत्थगयं गेहे २ देहं बलियाए विचि कप्पेमाणं पासति २ तदा भगवं गोयमे उच्चणीयमज्झिमकुलाई अति, अहापज्जत्तं गेएहति २ पालि० पडिनि० जेणेव समणे भगवं० भत्तपाणं आलोएति, भत्तपाणं पडिदंसेति २ समां अमरणाते रुमाणे बिलमिव पन्नगभूते अप्पाणेणं आहारमा हारेइ संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणे विहरति । पुरिसं - एक पुरुष को । 1 पदार्थ - तेणं कालेनं २ – उस काल, और उस समय में । भगवं - भगवान् । गोतमेगौतम । तहेव - तथैव अर्थात् पूर्व की भान्ति । जेणेव - जहां- जिधर । पाडलिसंडे - पाटलिपंड गरे- - नगर था । तेणेव -वहां । उवागच्छति २-३ -आते हैं, आकर । पाडलिसंड- पाटलिषंड । जगरं - नगर में । पुरत्थिमेणं - पूर्व दिशा के । दारेणं- - द्वार से । श्रणुष्पविसति – प्रवेश करते हैं । तत्थ णं-वहां पर । एगं पासति - देखते हैं जो कि । कच्छुल्लं – कंटू - खुजली के रोग से युक्त । कोढियं- कुष्ठी - कुष्ठरोग वाला । दायरियं-- जलोदर रोग वाला । भगंदरियं - भगंदर का रोगी । श्ररिसिल्लं - अर्शस - बवासीर का रोगी । कासिल्लं - कास का रोगी । सासिल्लं - श्वास रोग वाला । सासिल्लं शोफयुक्त अर्थात् शोफ – सूजन का रोगी । सूयमुहं शूनमुख जिस के मुख पर सोजा पड़ा हुआ हो । सूयइत्थं सूजे हुए हाथों वाला | सूयपाय सूजे हुए पांव वाला । सडियहत्थंगुलिये - जिस के हाथों की अंगुलिये सड़ी हुई हैं । डिपायंगुलिये - जिस के पैरों की अंगुलियें सड़ी हुई हैं । सडियकरणनासियं-जिस के कान और नासिका सड़ गये हैं । रसियाए य रसिका व्रणों से निकलते हुए सफेद गन्दे पानी से । पूपण य-तथा पीच से । थिविधिवंत - थिवथिव शब्द से युक्त । वणमुह किमि उत्तयंत पगलंत पूयरुहिरं - कृमियों से उत्तुद्यमान अत्यंत पीडित तथा गिरते हुए पूय - पीव और रुधिर वाले मुख से युक्त । लालापगलंतकरणनासं- जिस के कान और नाक क्लेदतन्तुओं- फोड़े के बहाव की तारों से गल गये हैं । अभिकखणं २ - पुन: पुन: - बार बार पूयकवले य-पूय पीत्र के कवलों - यासों का । रुहिरकवले य - रुधिर के कवलों का । किमिकवले य - कृमिकवलों का । ममाणं - वमन करता हुआ । कट्ठाई - दुःखद कलुगाई - करुणोत्पादक । वीसराई - विस्वर - दीनता वाले वचन । कूयमाणं बोलता हुआ । मच्छियाचडगरपहगरेणं - मक्षिकाओं के विस्तृत समूह से मक्षिकाओं के धिय से । अणिज्जमाणमग्गं - अन्वीयमानमार्ग अर्थात् उस के पीछे और आगे मक्षिकाओ के झुण्ड के झुण्ड लगे हुए थे । फुट्टइड्राइडसीसं - जिस के सिर के केश नितान्त बिखरे हुए थे । दंडिखंडवसणं - जो टाकियों वाले दस्त्रों को धारण किए हुए था। खंडमल्जयखंडघडग हत्थायंभिक्षापात्र तथा जलपात्र जिस के हाथ में थे । गेहे २ - घर २ में । देबलियाए - भिक्षावृत्ति से । वित्ति.. T For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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