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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir षष्ठ अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित [३६५ स्स-चित्र । अलंकारियस्स -- अलंकारिक के । अंतिए-पास से । एयमg-इस बात को। सोच्चासुन कर, एवं । निसम्म-अवधारण-निश्चित कर। आसुरुत्ते - क्रोध से लाल पीला होता हुआ । जाव-यावत् । साहद-मस्तक में तिउड़ी चढ़ा कर अर्थात् अत्यन्त कोधित होता हुआ । णंदिसेणंनन्दिषेण । कुमारं-कुमार को । पुरिसेहि- पुरुषों के द्वारा । गेराहावेति २ त्ता- पकड़वा लेता, है, पकड़वा कर । एएणं - इस । विहाणेणं-विधान-प्रकार से । वझ- वह मारा जाये ऐसी राजपुरुषों को । प्राणवेति-प्राज्ञा देता है । एवं खनु-इस प्रकार निश्चय ही । गोतमा !- हे गौतम ! । णंदिसेणे नन्दिषेण । पत्त-तुत्र । जाव- यावत् अर्थात् स्वकृत कर्मों के फल का अनुभव करता हुआ । विहरति-विहरण कर रहा है । मूलार्थ-तदनन्तर श्रीदाम नरेश के वध का अवसर प्राप्त न होने से कुमार नन्दि. षेण ने किसी अन्य समय चित्र नामक अलंकारिक-नाई को बुना कर इस प्रकार कहा-कि हे महानुभाव ! तुम श्रीदाम नरेश के सर्वस्थानों, सर्वभूमिकाओं तथा अन्तःपुर में स्वेच्छापूर्वक श्रा जा सकते हो और श्रीदाम नरेश का बार २ अलंकारिक कर्म करते रहते हो, अत: हे महानुभाव ! यदि तुम नरेश के अलंकारिक कर्म में प्रवृत्त होने के अवसर पर उसकी ग्रीवागरदन में उस्तरा घोंप दो अर्थात इस प्रकार से तुम्हारे हाथों यदि नरेश का वध हो जाए तो मैं तुम को आधा राज्य दे डालूगा। तदनन्तर तुम हमारे साथ उदार -प्रधान (उत्तम) कामभोगों का उपभोग करते हुए मानन्द समय व्यतीत करोगे।। तदनन्तर चित्र नामक अलंकारिक ने कुमार नन्दिषेण के उक्त विचार वाले वचन को स्वीकृत किया, परन्तु कुछ ही समय के पश्चात् उस के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि यदि किसी प्रकार से इस बात का पता श्रीदाम नरेश को चल गया तो न मालूम मुझे वह किस कुमौत से मारे-इस विचार के उद्भव होते ही वह भयभीत, त्रस्त, उद्विग्न एवं संजातभय हो उठा और तत्काल ही जहां पर महाराज श्रीदाम थे वहां पर आया । एकान्त में दोनों हाथ जोड़ मस्तक पर दस नाखुनों वालो अंजली करके अर्थात् विनयपूर्वक श्रीदाम नरेश से इस प्रकार बोला हे स्वामिन् ! निश्चय ही नन्दिषेण कुमार राज्य में मूच्छित गृद्ध, ग्रथित और अध्युपपन हो कर आपके वध में प्रवृत्त होना चाह रहा है । वह आप को मार कर स्वयं राज्यश्री राज्यलक्ष्मी का संवर्धन कराने और स्वयं पालन पोषण करने की उत्कट अभिलाषा रखता है । इसके अनन्तर श्रीदाम नरेश ने चित्र अलंकारिक से इस बात को सुन कर उस पर विचार किया और अत्यन्त क्रोध में आकर नन्दिषेण को अपने अनुचरों द्वारा पकड़वा कर इस (पूर्वोक्त) विधान-प्रकार से मारा जाए ऐसा राज पुरुषों को आदेश दिया। भगवान कहते हैं कि हे गौतम ! यह नन्दियेण पुत्र इस प्रकार अपने किए हुए अशुभ कर्मों के फल को भोग रहा है। टीका-राज्यशासन का प्रलोभी नन्दिषण हर समय इसी विचार में रहता था कि उसे कोई ऐसा अवसर मिले जब वह अपने पिता श्रीदाम नरेश की हत्या करने में सफल हो जाय । परन्तु उसे अभी तक ऐसा अवसर प्राप्त नहीं हो सका। तब एक दिन उसने उपायान्तर सोचा और तदनुसार (१) मूर्च्छित, गृद्ध आदि पदों का अर्थ पृष्ठ १७३ लिखा जा चुका है। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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