SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org षष्ठ अध्याय ] [ ३५१ जो तलवार पत्र के समान प्रतनु ( पतली ) होती है, वह असिपत्र कहलाती है, अर्थात् मात्र असि शब्द से तो सामान्य तलवार का बोध होता है जब कि उस के साथ प्रयुक्त हुआ पत्र यह शब्द उस में (तलवार में) पत्र के सदृश - समान प्रतनुता का बोध कराता है । इसी प्रकार करपत्र, क्षुरपत्र और कदम्बवीरपत्र के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिये । लोहे की कील – मेख को लोहकील कहते | वंशलाका का अर्थ बांस की सलाई होता है । अर्धमागधीकोषका कक्करा - इस पद का संस्कृत प्रतिरूप " कटशर्करा ऐसा मानते हैं । परन्तु प्राकृतशब्दमहार्णवकोषकार के मत में - कड़सक्करा - यह देश्य - देशविशेष में बोला जाने वाला पद है । चर्मपट्ट - चमड़े के पट्टे का नाम है । अल शब्द बिच्छू के पूछ के आकार वाले शस्त्र विशेष के लिए अथवा बिच्छू की पूंछगत डंक के समान विषाक्त ( ज़हरीले ) शस्त्रविशेष के लिये प्रयुक्त होता है । हिन्दी भाषा टीका सहित Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir - सूची सूई का नाम है । दम्भन शब्द का अर्थ वृत्तिकार के शब्दों में – “ – यैरग्निप्रदीप्तैर्लोहशलाकादिभिः परशरीरेऽङ्क उत्पाद्यते तानि दम्भनानि - " इस प्रकार है, अर्थात् जिन संतप्त लोहशला - कार्यों के द्वारा दूसरे के शरीर में चिन्ह किया जाये उन्हें दस्तन कहते हैं । स्वाथ में कप्रत्यय हो जाने पर दम्भनक शब्द का भी व्यवहार होता है। कौटिल्य शब्द छोटे मुद्गरों लिये प्रयुक्त होता है । शस्त्र उस उपकरण को कहते हैं जिस से किसी को काटा या मारा जाए, अथवा गुप्ती ( वह छड़ी जिस के अन्दर गुप्तरूप से किरच या पतली तलवार हो) आदि को शस्त्र कहा जाता है । पिप्पल छुरी को कहते हैं । कुल्हाड़े का नाम कुठार है । नहरनी (नाइयों का एक औज़ार जिस से नाखून काटे जाते हैं ) का नाम नवच्छेदन है । दर्भ-दर्भ ( बारीक घास) को कहते हैं अथवा दर्भ के प्रभाग की तरह तीक्ष्ण हथियार का नाम भी दर्भ होता है । " - रिद्ध० " यहां के जाव दुष्पडियानंदे - " यहां के जा चुका है। पाठक वहीं से देख बिन्दु से विवक्षित पाठ को पृष्ठ १३८ पर तथा “ - हिम्म जाव - यावत् पद से विवक्षित पाठ को पृष्ठ ५५ पर लिखा सकते हैं । प्रस्तुत सूत्र में चारकपाल दुर्योधन के कारगारसम्बन्धी उपकरण सामग्री का निर्देश किया गया है, अब अग्रिम सूत्र में उस के कृत्यों का वर्णन किया जाता है - मूल -- तते गं से दुज्जोहणे चारगपाले सीहरहस्स रणो बहवे चोरे य For Private And Personal (१) छाया - ततः सः दुर्योधनः चारकपालः सिंहरथस्य राज्ञोऽपकारिणश्च ऋणधारकांश्च बालघाति. नश्च विश्रम्भघातिनश्च द्यूतकारांश्च धूर्तांश्च पुरुषग्रहयति ग्राहयित्वा उत्तानान् पातयति, लोहदंडेन मुखमुद्घाटति, उद्घाटय प्येकान् तप्तताम्र पाययति, अप्येकान् त्रपुः पाययति अप्येकान् सीसकं पाययति प्रत्येकान् कलकलं पाययति, अप्येकान् क्षारतैलं पाययति । श्रप्येकेषां तेनैवाभिषेकं कारयति । श्रप्येकानुत्तानान् पातयति २ अश्वमूत्र पाययति श्रप्येकान् हस्तिमूत्र पाययति यावदेडमूत्र पाययति । श्रध्येका नोमुखान् पाययति २ घलघलं वमयति २ अप्येकेषां तेनैवावपीडं दापयति । अन्येकान् हस्तान्दुकैर्ब्रन्धयति अप्येा पादान्दुकैः बन्धयति, अप्येकान् हडिबंधनान् करोति, प्रध्येकान् निगड़बन्धनान् करोति, श्रप्येकान् संकोचिताम्रेडितान् करोति, अप्येकान् श्रृंखलाबन्धनान् करोति, अप्येकान् छिन्नहस्तान् करोति, यावच्छस्त्रोत्पाटितान् करोति, प्येकान् वेणुलताभिश्च यावद् वल्करश्मिभिश्च घातयति । श्रप्येकानुत्तानान् कारयति, उरसि शिलां दापयति २ लकुटं क्षेपयति, पुरुषैरुत्कम्पयति । अप्येकान् तन्त्रीभिश्च यावत् सूत्रर Th
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy