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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ३४४] श्री विपाक सूत्र [षष्ठ अध्यार उन्हों ने दृष्ट व्यक्ति का सब वृत्तान्त भगवान को कह सुनाया तथा साथ में उसके पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा, श्रादि सम्पूर्ण वृत्तान्त पूर्व की भान्ति ही जान लेना चाहिये । तदनन्तर भगवान् ने गौतम स्वामी द्वारा किए गए उक्त पुरुष के पूर्व भवसम्बन्धी प्रश्न का उत्तर देना प्रारम्भ किया । . ताम्र ताम्बे को कहते हैं । त्रपु शब्द रांगा, कलई, टीन, जस्ता (जिस्त) के लिये प्रयुक्त होता है । सीसक नीलापन लिये काले रंग की एक मूल धातु का नाम है, जिस को सिक्का कहा जाता है । कलकल शब्द का अर्थ टोकाकार अभय देव सूरि के शब्दों में “- कनक नायते इति कलकलं चूर्णकादिमिश्रितजलं-" इस प्रकार है अर्थात् चूर्णक आदि से मिश्रित गरम २ जल का परिचायक कलक। शब्द है । तथा. कहीं कलकल शब्द का - कलकल शब्द करता हुआ गरम २ पानी, यह अर्थ भी उपलब्ध होता है । क्षार-तैन - उस तेल का नाम है जिस में क्षार वाला चूर्ण मिला हुआ हो । निग्गओ जाव गया - यहां का जाव-यावत् पद "--धम्मो कहिओ परिसा पडि-" इन पदों का परिचायक है, अर्थात् भगवान् ने धर्म का उपदेश किया और परिषद् -जनता सुन कर चली गई। -जाव रायमग्ग-" यहां का जाव-यावत् पद "-अन्तेवासी गोयमे छहकाखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए-" इत्यादि पदों का परिचायक है । जिन के सम्बन्ध में पृष्ठ २०७ पर लिखा जा चुका है। "-पासति जाव नरनारिसंपरिवुर्ड-"यहां पठित जाव-यावत् पद -अवबोडगवन्धणं उक्कितकराणनासं नेहत्तु प्पियगत- से ले कर -कक्करसरहिं हम्ममाणं अणेग-" इन पदों का संसूचक है । इन पदों का अर्थ पृष्ठ १२४ तथा १२५ पर दिया जा चका है। "-श्रद्धहारं जाव पट्ट-" यहां के जाव यावत् पद से "--तिसरयं पिणद्धति, पालंब पिणद्धति, कडिसुत्तयं पिणद्धति-" इत्यादि पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । अर्द्धहार आदि पदों का अर्थ निम्नोक्त है १-अर्द्धहार- जिस में नौ सरी-लड़ी हों उसे अर्द्धहार कहते हैं । २- त्रिसरिक-तीन लड़ों वाले हार को त्रिसरिक कहा जाता है । -३ प्रालम्ब – गले में डालने की एक लम्बी माला के लिये प्रालम्ब शब्द प्रयुक्त होता है । ४-कटिसूत्र-कमर में पहनने के डोरी को कटिसूत्र कहते हैं । -चिन्ता तहेव जाव वागरेति-" यहां पठित चिन्ता शब्द का अभिप्राय चतुर्थ अध्ययन के पृष्ठ २८७ पर लिखा जा चुका है । तथा – तहेव पद का अभिप्राय भी पृष्ठ १३३ पर लिख दिया गया है । अन्तर मात्र इतना है कि वहां वाणिजग्राम नगर का उल्लेख है जब कि प्रस्तुत में मथुरा नगरी का । तथा वहां भगवान् गौतम ने वाणिजग्राम के राजमार्ग पर देखे दुए दृश्य का वृत्तान्त भगवान महावीर को सुनाया था जब कि यहां मथुरा नगरी के राजमार्ग पर देखे का, एवं दृष्ट दृश्य के वर्णन करने वाले पाठ को तथा मथुरा नगरी के राजमार्ग पर अवलोकित व्यक्ति के पूर्वभव पृच्छासम्बन्धी पाठ को संक्षिप्त करने के लिये सूत्रकार ने जाव यावत् पद का आश्रयण किया है। जाव यावत् पद से विवक्षित पाठ निम्नोक्त है -त्ति कटु महुराए नगरीए उच्चनीयमज्झिमकुले अडमाणे अहापज्जत्तं समुया गेएहति २ महुराणयरिं मझमज्झेण जाव पडिदंसति, समणं भगवं महावीरं वन्दति, नर्म For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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