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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पश्र्चम अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । [ ३३१ - को । पासति २ – देखता है, देख कर । श्रासुरुत्त े - क्रोध से लाल पीला हो । तिवलियं - त्रिवलिकतीन वल वाली । भिउडि - भृकुटि - तिउड़ी । णिडाले - मस्तक पर । साहहु – चढ़ा कर । वहस्पतिदतं - बृहस्पतिदत्त | पुरोहितं पुरोहित को । पुरिसेहि- पुरुषों के द्वारा । गेरहावेति २ – पकड़वा लेता है. पकड़वा कर । जाब- यावत् । एतेणं - इस । विहाणेणं - विधान से । वज्भं यह मारने योग्य है, ऐसी । श्राणवेति- आज्ञा देता है । एवं खलु - इस प्रकार निश्चय ही । गोतमा ! – हे गौतम ! वहस्सतिदत्त े – वृहस्पतिदत्त । पुरोहिते - पुरोहित । पुरा - पूर्वकाल में किये हुए । पुराणाणं - पुरातन | जाव - यावत् कमां के फल का उपभोग करता हुआ । विहरति समय व्यतीत कर रहा है । मूलार्थ - - तदनन्तर महेश्वरदत्त पुरोहित का पापिष्ट जीव उस पांचवीं नरक से निकल कर सीधा इसी कौशाम्बी नगरी में सोमदत्त पुरोहित की वसुदत्ता भार्या के उदर में पुत्ररूप से उत्पन्न हुआ । तदनन्तर उत्पन्न हुए बालक के माता पिता ने जन्म से बारहवें दिन नामकरण संस्कार करते हुए सोमदत्त का पुत्र और वसुदत्ता का आत्मज होने के कारण उसका वृहस्पतिदत्त यह नाम रखा । तदनन्तर वह वृहस्पतिदत्त बालक पांच धाय माताओं से परिगृहीत यावत् वृद्धि को प्राप्त करता हुआ तथा बालभाव को त्याग कर युवावस्था को प्राप्त होता हुआ, एवं परिपक्व विज्ञान को उपलब्ध किए हुए वह उदयन कुमार का बाल्यकाल से ही प्रिय मित्र था, कारण यह था कि ये दोनों एक साथ उत्पन्न हुए, एक साथ बढे और एक साथ ही खेले थे । आक्रन्दन तदनन्तर किसी अन्य समय महाराज शतानीक कालधर्म को प्राप्त हो गए । तब उदयन कुमार बहुत से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के साथ रोता हुआ, तथा विलाप करता हुआ शतानीक नरेश का बड़े आडम्बर के साथ निस्सरण तथा मृतकसम्बन्धी सम्पूर्ण लौकिक कृत्यों को करता है । तदनन्तर उन राजा ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि लोगों ने मिल कर बड़े समारोह के साथ उदयन कुमार का राज्याभिषेक किया । तब से उदयन कुमार हिमालय आदि पर्वत के समान महाप्रतापी राजा बन गया । तदनन्तर बृहस्पति बालक उदयन नरेश का पुरोहित बना और पौरोहित्य कर्म करता हुआ वह सर्वस्थानों, सर्वभूमिकाओं तथा अन्तःपुर में इच्छानुसार बेरोकटोक गमनागमन करने लगा । तदनन्तर वह वृहस्पतिदत्त पुरोहित का उदयन नरेश के अन्तःपुर में समय, समय, काल, अकाल तथा रात्रि और संध्याकाल में स्वेच्छापूर्वक प्रवेश करते हुए किसी समय पद्मावती देवी के साथ अनुचित सम्बन्ध भी हो गया । तदनुसार पद्मावती देवी के साथ वह उदार - यथेष्ट मनुष्यसम्बन्धी काम-भोगों का सेवन करता हुआ समय व्यतीत करने लगा । safir समय उदयन नरेश स्नानादि से निवृत्त हो कर और समस्त श्रभूषणों से अलंकृत हो कर जहां पद्मावती देवी थो वहां पर आया, आकर उसने पद्मावती देवी के साथ कामभोगों का भोग करते हुए वृहस्पतिदत्त पुरोहित को देखा, देख कर वह क्रोध से तमतमा उठा और मस्तक पर तीन वल बाली विउड़ी चढ़ा कर वृहस्पतिदत्त पुरोहित को पुरुषों के द्वारा पकड़वा कर यह - इस प्रकार वध कर डालने योग्य है - ऐसी राजपुरुषों को आज्ञा दे देता है । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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