SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 394
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री विपाक सूत्र [चतुर्थ अध्याय -राहाते जाव सव्वालंकारविभूसिते-यहां पठित जाव-यावत् पद से अपेक्षित-कयबलिकम्मे-इत्यादि पदों का उल्लेख पृष्ठ १७६ पर किया जा चुका है। तथा-आसुरुत्त जाव मिसिमिसीमाणे-यहां पठित जाव-यावत् पद से -रु? कुविए चण्डिस्किर-इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभिमत है । इन की व्याख्या पृष्ठ १७७ की टिप्पण में की जा चुकी है । तथा-अहि० जाव महियं-- यहां के जाव-यावत् पद से—मुहि-जाणु-कोप्पर- पहार-संभग्ग-इन पदों का ग्रहण करना, अर्थात् सुषेण 'त्री शकट कुमार को यष्टि-लाठी, मुष्टि, जानु -घुटने, कूपर-कोहनी के प्रहारों से संभन चूर्णित तथा मथित कर डालता है। दूसरे शब्दों में- जिस प्रकार दही मंथन करते समय दही का प्रत्येक कण मथित हो जाता है ठीक उसी प्रकार शकट कुमार का भी मन्थन कर डालते हैं तात्पर्य यह है कि उसे इतना पीटा, इतना मारा कि उस का प्रत्येक अंग तथा उपांग ताड़ना से बच नहीं सका। तथा-करयल० जाव एवं-यहां के जाव-यावत् पद से अभिमत पाठ का उल्लेख पीछे पृष्ठ २४६ पर किया जा चुका है। -दुच्चिराणाणं जाव विहरति-यहां के जाव-यावत् पद से-दुप्पडिक्कन्ताणं असुभाणं पावाणं कडाणं कम्माणं पावगं फलवित्तिविसेसं पञ्चणुभवमाणे - इन पदों का ग्रहण करना सूत्रकार को अभीष्ट है। इन पदों का अर्थ पृष्ठ ४७ पर किया गया है। गतसूत्रों तथा प्रस्तुत सूत्र में शकट कुमार के विषय में पूछे गये प्रश्न का उत्तर वर्णित हुआ है । अब अग्रिम सूत्र में इसी सम्बन्ध को लेकर गौतम स्वामी ने जो जिज्ञासा की है उस का वर्णन किया जाता है - मूल-'सगड़े णं भन्ते ! दारए कालगते कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववन्जिहिति । ___ पदार्थ-भंते! -हे भगवन् ! । सगड़े-शकट कुमार । दारए-बालक । णं-वाक्यालंकारार्थक है । कालगते-कालवश हुआ । कहिं-कहां। गच्छिहिति ?-जायेगा ? । कहिं-कहां पर । उववज्जिहिति-उत्पन्न होगा । मूलार्थ-हे भगवन् ! शकट कुमार बालक यहाँ से काल करके कहां जायेगा और कहां पर उत्पन्न होगा ? टीका-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से शकट कुमार के पूर्वभव का वृत्तान्त सुन लेने के पश्चात् गौतम स्वामी को उसके आगामी भवों के सम्बन्ध में विशिष्ट ज्ञान प्राप्त करने की लालसा जागृत हुई तदनुसार उन्होंने भगवान् से उसके आगामी भवों के सम्बन्ध में भी पूछ लेने का विचार किया । वे बड़े विनीतभाव के द्वारा वीर प्रभु से पूछने लगे कि हे भदन्त ! शकट कुमार यहां से काल करके कहां जायेगा ? और कहां पर उत्पन्न होगा ? मनोविज्ञान का यह नियम है कि जिस विषय में मन एक बार लग जाता है, उस विषय का अथ से इति पर्यन्त बोध प्राप्त करने की उस में लग्न सी हो जाती है। इसी नियम के अनुसार गौतम स्वामी भी पुन: भगवान् से पूछ रहे हैं । उन का मन शकट कुमार के जीवन को अथ से इति पर्यन्त समझने की लालसा में व्यस्त है, वह उसके आगामी जीवन से भी अवगत होना चाहता है। यही रहस्य गौतम स्वामी के प्रश्न में छिपा हुआ है । (१) छाया-शकटो भदन्त ! दारक: कालगतः कुत्र गभिष्यति ? कुत्रोपपत्स्यते । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy