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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir २६० श्री विपाक सूत्र [तीसरा अध्याय आदि के सेवन द्वारा जहां शालाटवी नामक चोरपल्ली थी वहां पहुंचे और वहां पर उन्हों ने अभग्नसेन चोरसेनापति से दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके इस प्रकार निवेदन किया महानुभाव ! पुरिमताल नगर में महाबल नरेश ने उच्छुल्क यावत् दस दिन का प्रमोद उद्घोषित किया है, तो क्या आप के लिये अशनादिक यावत् अलंकार यहां पर उपस्थित किये जाएं अथवा आप वहां पर स्वयं चलने की कृपा करेंगे? तब अभग्नसेन चौरसेनापति ने उन कौटुम्बिक परुषों को उत्तर में इस प्रकार कहा हे भद्र पुरुषो ! मैं स्वयं ही पुरिमताल नगर में आऊंगा। तत्पश्चात् अभग्नसेन ने उन कौटुम्बिक पुरुषों का उचित सत्कार कर उन्हें बिदा किया-वापिस भेज दिया ।। टीका-एक दिन नीतिकुशल महाबल नरेश ने स्वकार्य सिद्धि के लिये अपने प्रधान मंत्र को बुलाकर कहा कि परिमताल नगर के किसी प्रशस्त विभाग में एक कटाकारशाला का निर्माण कराओ, जो कि हर प्रकार से अद्वितीय हो और देखने वालों का देखते २ जी न भर सके । उस में स्तम्भों की सजावट इतनी सुन्दर और मोहक हो कि दर्शकों की टिकटिकी बन्ध जावे। नृपति के आदेशानुसार प्रधान मंत्री ने शालानिर्माण का कार्य प्रारम्भ कर दिया और प्रान्त भर के सर्वोत्तम शिल्पियों को इस कार्य में नियोजित कर दिया गया। मंत्री की प्राज्ञानुसार बड़ी शीघ्रता से कूटाकार- शाला का निर्माण होने लगा और वह थोड़े ही समय में बन कर तैयार हो गई । प्रधान मंत्री ने महारज को उसकी सूचना दी और देखने की प्रार्थना की । महाबल नरेश ने उसे देखा और वे उसे देख कर बहुत प्रसन्न हुए । द्रव्य में बड़ी अद्भुत शक्ति है, वह सुसाध्य को दुसाध्य और दुस्साध्य को सुसाध्य बना देता है पुरिमताल नगर की यह कुटाकारशाला अपनी कक्षा की एक थी । उस का निर्माण जिन शिल्पियों के हाथों से हुअा वे भारतीय शिल्प – कला तथा चित्रकला के अतिरिक्त विदेशीय शिल्पकला में भी पूरे २ प्रवीण थे। उन्हों ने इस में जिस शिल्प और चित्र कला का प्रदर्शन कराया वह भी अपनी कक्षा का एक ही था । सारांश यह है कि इस कूटाकारशाला से जहां पुरिमताल नगर की शोभा में वृद्धि हुई वहां महाबल नरेश को कीति में भी चार चांद लग गये । तदनन्तर इस कुटाकार-शाला के निमित्त महाबल नरेश ने दस दिन के एक उत्सव का आयोजन कराया, जिस में आगन्तुकों से किसी भी प्रकार का राजदेय कर महमूल वगैरह लेने का निषेध कर दिया गया था । महाबल नरेश ने अपने अनुचरों को बुला कर जहां उक्त उत्सव में सम्मिलित होने के लिये अन्य प्रान्तीय प्रतिष्ठित नागरिकों को आमंत्रित करने का आदेश दिया, वहां चोरपल्ली के चोरसेनापति अभग्नसेन को भी बुलाने को कहा । अभग्नसेन के लिये महाराज राजा महाबल का खास आदेश था । उन्होंने अनुचरों से निम्नोक्त शब्दों में निवेदन करने की आज्ञा दी महाराज ने एक अतीव रमणीय और दर्शनीय कुटाकारशाला तैयार कराई है, वह अपनी कक्षा की एक ही है । उस के उपलक्ष्य में एक वृहद् उत्सव का आयोजन किया गया है, जो कि दस दिन तक बराबर चाल रहेगा उस में और भी बहुत से प्रतिष्ठित सज्जनों को आमंत्रित किया गया है और वे पधारेंगे भी । तथा आप को आमंत्रण देते हुए महाराज ने कहा है कि For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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