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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री विपाक सूत्र - [ तीसरा अध्याय २५८] २ त्ता कोडु बियपुरिसे सद्दावेति २ एवं वयासी - गच्छह गं तुब्भे देवाणु० ! सालाडवीए चोरपल्लीए, तत्थं गं तुब्भे श्रभग्गसेणं चोरसे० करयल० जाव एवं वयह - एवं खलु देवा ! पुरिमताले गरे महब्बलेण ररणा उस्सुक्के जाव दसरत्ते पमोदे उग्घोसिते । तं किरणं देवा ! विउलं असणं ४ पुफ्फवत्थगंधमल्लालंकारे य इहं हव्वमाज्जा उयाहु सयमेव गच्छज्जा ? तते गं कोड बियपुरिसा महब्बलस्स रणो कर० जाव परिमताला बगराओ पडिनिक्खमंत २ खातिविकिड हिं श्रद्धाणेहिं 'सुहेहिं वसहिपायरासेहिं जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव उवा० २ भगसेणं चोरसेणावतिं करयल ० जाव एवं वयासी – एवं खलु देवाणु ० ! पुरिमताले गगरे महब्बलेण रण्णा उस्सुक्के जाव उदाहु सयमेव गच्छिज्जा तते गं से अभग्ग० चोरसे ते कोड बियपुरिसे एवं वयासीअहरणं देवा ! पुरिमतालं रागरं सयमेव गच्छामि । ते कोड बियपुरिसे सक्कारेति २ पडिविसज्जेति । ' 1 पदार्थ - तते णं - तदनन्तर । से- -उस । महब्बले - महाबल । राया - राजा । श्रन्नया कयाइ–किसी अन्य समय । पुरिमताले - पुरिमताल । गगरे - नगर में । एगं - एक । महं - प्रशस्त । महतिमहालियं - अत्यन्त विशाल । कूडागारसालं - २ कूटाकारशाला - षड्यंत्र के लिये बनाया हुआ घर । करेति – बनवाई | अणेगखंभसतसंनिविट्ट - जो कि सैंकड़ों स्तम्भों से युक्त । पासाइयं ४-१ प्रासादीयमन को हर्षित करने वाली, २ दर्शनीय - जिसे बारम्बार देखने पर भी आंखें न थर्के, ३ अभिरूप – जिसे एक बार देख लेने पर भी पुनः देखने की लालसा बनी रहे और ४ प्रतिरूप – जिसे जब भी देखा जाय तब भी वहां नवीनता ही प्रतीत हो, ऐसी थी । तते गं - तदनन्तर । से-उस । महब्बले - महाबल । राया - राजा ने । अन्नया कयाइ - किसी अन्य समय । पुरिमताले - पुरिमताल । गगरे - नगर में । उस्सुक्कं - उच्छुल्क – जिस में राजदेय भाग - महसूल माफ कर दिया हो । जाव - यावत् । दसरत्तं - दस दिन पर्यन्त । पमोयं - प्रमोद -- उत्सव की । उग्घोसावेति २ त्ता-: I - उद्घोषणा कराई, उद्घोषणा करा कर । कोडु'बियपुरिसे - कौटुम्बिक पुरुषों को । सद्दावेति२ - बुलाता है, बुला कर । एवं - इस प्रकार । वयासी - कहने लगा । देवाणु० ! - हे भद्र पुरुषो ! | तुब्भे- तुम । सालाडवीए - शालाटवी । चोरपल्लीए – चोरपल्ली में । गच्छह णं - जाओ । तत्थ जं-वहां पर । तुब्भे – तुम । श्रभग्गसेणंअभग्नसेन । चोरसे० - चोरसेनापति से । करयल० जाव - दोनों हाथ जोड़ यावत् अर्थात् मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके । एवं- - इस प्रकार । वयह - कहो । देवाणु० ! - हे महानुभाव ! । एवं - इस प्रकार । खलु – निश्चय से । पुरिमताले - पुरिमताल । गगरे-न - नगर में । महब्बलेणं - महाबल । I 1 (१) सुखैः सुखकारकैः शुभैर्वा - प्रशस्तैः, वसतिप्रातराशेः - मार्गविश्रामस्थानः पूर्वाह्नवर्तिलघुभोजनैश्च मार्गे सुखपूर्वकं निवसनं, यमद्वयमध्ये भोजनं चेत्येतद्द्द्वयं पथिकाय परमहितकारकमिति भावः । (२) कूटस्य शिखरस्य (स्तूपिकायाः) इव श्राकाशे यस्याः शालायाः गृहविशेषस्य सा कूटाकारशाला - अर्थात् जिस भवन का आकार पर्वत के शिखर-चोटी के समान है उसे कूटाकारशाला कहते हैं । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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