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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रो विपाक सूत्र [तीसरा अध्याय मूलार्थ-उस काल तथा उस समय में पुरिमताल नगर में श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे । परिषद्-जनता नगर से निकली तथा राजा भी प्रभु के दर्शनार्थ चला। भगवान् ने धर्म का प्ररूपण किया । धर्मोपदेश को श्रवण कर राजा तथा परिषद् वापिस अपने २ स्थान को लौट आई। - उस काल तथा उस समय श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ-बड़े शिष्य श्री गौतम स्वामी यावत् राजमार्ग में पधारे । वहां उन्हों ने अनेक हस्तियों, अश्वों तथा सोनिकों की भान्ति शस्त्रों से सुसज्जित एवं कवच पहने हुए अनेकों पुरुषों को और उन पुरुषों के मध्य में अवकोटक बन्धन से युक्त यावत् उद्घोषित एक पुरुष को देखा। तदनन्तर राजपुरुष उस पुरुष को प्रथम चत्वर पर बैठा कर उस के आगे लघुपिताओंचाचाओं को मारते हैं। तथा कशादि के प्रहारों से ताड़ित करते हुए वे राजपुरुष करुणाजनक स्थिति को प्राप्त हुए उस पुरुष को-उसके शरीर में से काटे हुए मांस के छोटे २ टुकड़ों को खिलाते हैं और रुधिर का पान कराते हैं। तदनन्तर द्वितीय चत्वर पर उस की आठ लघुमाताओंचाचियों को उस के आगे ताड़ित करते हैं, इसी प्रकार तीसरे चत्वर पर आठ महापिताओंपिता के ज्येष्ठ भ्राताओं-तायों को, चौथे पर आठ महामाताओं-पिता के ज्येष्ठ भ्राताओं की धर्मपत्नियों-ताइयों को, पांचवें पर पुत्रों को, छठे पर पुत्रवधुओं को, सातवें पर जामाताओं को, आठवें पर लड़कियों को, नवमें पर नप्ताओं को अर्थात् पौत्रों और दौहित्रों को, दसवें पर लड़के और लड़की के लड़कियों को अर्थात् पौत्रियों और दौहित्रियों को, एकादशवें पर नातृकापतियों को अर्थात् पौत्रियों और दौहित्रियों के पतियों को, बारहवें पर नप्तृभार्याओं को अर्थात् पौत्रों और दौहित्रों की स्त्रियों को, तेरहवें पर पिता की बहिनों के पतियों को अर्थात् फूफाओं को, चौदहवें पर पिता की भनियों को, पन्द्रहवें पर माता की बहिनों के पतियों को, सोलहवें पर मातृष्वसाओं अर्थात् माता को बहिनों को, सतरहवें पर मातुलानी-मामा की स्त्रियों को, अठारहवें पर शेष मित्र, ज्ञातिजन, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों को उस पुरुष के आगे मारते हैं तथा कशा (चाबुक) के प्रहारों से ताड़ित करते हुए वे राजपुरुष दयनीय-दया के योग्य उस पुरुष को, उस के शरीर से निकाले हुए मांस के टुकड़े खिलाते और रुधिर का पान कराते हैं। टीका-सूत्रकार उस समय का वर्णन कर रहे हैं जब कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पुरिमताल नगर के किसी उद्यान में विराजमान हो रहे हैं । तब वीर प्रभु के पधारने पर वहां का वातावरण बड़ा शान्त तथा गम्भीर बना हुआ था। प्रभु का आगमन सुन कर नगर की जनता में उत्साह और हर्ष की लहर दौड़ गई। वह बड़ी उत्कएठा से भगवान् के दर्शनार्थ उद्यान की ओर प्रस्थित होने लगी। उस में अनेक प्रकार के विचार रखने वाले जीव मौजूद थे। कोई कहता है कि मैं आज भगवान् से साधुवृत्ति को समझूगा, कोई कहता है कि मैं श्रावक धर्म को जानने का यत्न करूंगा, कोई कहता है कि मैं आज जीव, अजीव के स्वरूप को पूछगा, कोई सोचता है कि जिस प्रभु का नाम लेने मात्र से सन्तप्त हुआ हृदय शान्त हो जाता है, उसके साक्षात् दर्शनों का तो कहना ही क्या है ? इत्यादि शुभ विचारों से प्रेरित हुई जनता उद्यान की ओर चली जा रही थी। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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