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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्री विपाक सूत्र [मरा अध्याय प्रत्येक अंग तथा उपांग ताड़ना से बच नहीं सका, और राजा की ओर से नगर के मुख्य २ स्थानों पर उस की इस दशा का कारण उस का अपना ही दुष्कम है, ऐसा उद्घोषित करने के साथ २ बड़ी निर्दयता के साथ उस को ताडित एवं बिडम्बित किया गया और अन्त में उसे वध्यस्थान पर ले जा कर शरीरान्त कर देने की आज्ञा दे दी गई। मित्रनरेश की इस आज्ञा के पालन में उज्झितक कुमार की कैसी दुर्दशा की गई थी, यह हमारे सहृदय पाठक प्रस्तुत अध्ययन के प्रारम्भ में ही देख चुके हैं ।। पाठकों को स्मरण होगा कि वाणिजग्राम नगर में भिक्षार्थ पधारे हुए श्री गौतम स्वामी ने राजमार्ग पर उज्झितक कुमार के साथ होने वाले परम कारुणिक अथ च दारुण दृश्य को देख कर हा श्रमण भगवान महावीर स्वामी से उसके पूव-भव सम्बन्धी वृत्तान्त को जानने की इच्छा प्रकट करते हुए भगवान् से कहा था कि भदन्त ! यह इस प्रकार को दुःखमयी यातना भोगने वाला उज्झितक कुमार नाम का व्यक्ति पूर्व-भव में कौन था ? इत्यादि । अनगार गौतम गणधर के उक्त प्रश्न के उत्तर में ही यह सब कुछ वर्णन किया गया है । इसी लिये अन्त में भगवान कहते हैं कि गौतम ! इस प्रकार से यह उज्झितक कुमार अपने पूर्वोपाजित पाप-कर्मों के फल का उपभोग कर रहा है । . इस कथा-सन्दर्भ से यह स्पष्ट रूप से प्रमाणित हो जाता है कि मूक प्राणियों के जीवन को लूट लेना, उन्हें मार कर अपना भोज्य बनालेना, मदरा आदि पदार्थों का सेवन करना एवं वासनापोषक प्रवृत्तियों में अपने अनमोल जीवन को गंवादेना इत्यादि बुरे कर्मों का फल हमेशा बुरा ही होता है । " एएणं विहाणेणं वझ आणवेति" यहां दिये गये "एतद्' शब्द से सूत्रकार ने पूर्व - वृत्तान्त का स्मरण कराया है । अर्थात् उज्झितक कुमार को अवकोटकबन्धन से जकड़ कर उस विधानविधि से मारने की आज्ञा प्रदान की है जिसे भिक्षा के निमित्त गए गौतम स्वामी जी ने राजमाग में अपनी आंखों से देखा था। "एतद्”- शब्द का प्रयोग समीपवर्ती पदार्थ में हुआ करता है, जैसे किइदमस्तु संनिकृष्टे, समीपतरवतिनि चैतदो रूपम् । अदसस्तु विप्रकृष्टे, तदिति परीक्षे विजानीयात् ॥ १॥ अर्थात् - इदम् शब्द का प्रयोग सन्निकृष्ट - प्रत्यक्ष पदार्थ में, एतद् का समीपतरवर्ती पदाथमें अदस शब्द का दूर के पदार्थ में और तद् शब्द का परोक्षपदार्थ के लिए प्रयोग होता है । केवलज्ञान तथा केवल दर्शन के धारक भगवान की ज्ञान -- ज्योति में उज्झितक कुमार का समस्त वर्णन समीपतर होने से यहां एतत् शब्द का प्रयोग उचित ही है। अथवा जिमे गौतम स्वामी जी ने समीपतर भूतकाल में देखा था, इस लिये यहां एतद् शब्द का प्रयोग औचित्य रहित नहीं है । अब सूत्रकार निम्नलिखित सूत्र में उज्झितक कुमार के आगामी भवसम्बन्धी जीवन-वृत्तान्त का वर्णन करते हुए कहते हैं - मूल-'उज्झियए णं भंते ! दारए इत्रो कालमासे कालं किच्ना कहिं गच्छि (१) छाया -उज्झितको भदन्त ! दारक इत: कालमासे कालं कृत्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्रोपपत्स्यते ।, गौतम ! उज्झितको दारकः पञ्चविशतिं वर्षाणि परमायु: पालयित्वा अद्य व त्रिभागावशेषे दिवसे For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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