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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दूसरा अध्याय । हिन्दी भाषा टीका सहित । गहाय - ग्रहण कर । एगंतं-एकान्त में । अवक्कमंति-चले जाते हैं । तते णं - तदनन्तर । सा-वह । सुभदा सत्यवाही-सुभद्रा सार्थवाही। विजयमित्त-विजयमित्र । सत्यवाहे - सार्थवाह को जिस के। पातविवत्तियं-जहाज़ पर विपत्ति आ गई है और । निव्वुड्डभंडसारं जिस का सारभाण्ड समुद्र में निमग्न हो गया है, ऐसे उस को। लवणसमुद्दे - लवणसमुद्र में । कालधम्मुणा-काल-धर्म से । संजुनं-संयुक्त मरे हुए को। सुणेति २ त्ता-सुनती है, सुन कर । महया-महान् । पतिसोएणंपतिशोक से । अप्फुराणा समाणी-व्याप्त हुई अर्थात् अत्यन्त दुःखित हुई २ । परसुनियत्ता विव चंपगलता कुल्हाड़ी से काटी गई चम्पक ( वृक्ष विशेष, अथवा चम्पा के पेड़ ) की लता-शाखा' - की भांति धसत्ति-धड़ाम से । धरणीतलंसि -जमीन पर । सवंगेहिं - सर्व अंगों से । संनिवडिया- गिर पड़ी। तते गं - तदनन्तर । सा-वह । सुभद्दा-सुभद्रा । सत्यवाही- सार्थवाही । मुहुत्तं तरेणं-एक मुहूर्त के अनन्तर । आसत्था समाणी-आश्वस्त हुई - सावधान हुई । बहूहिं-अनेक । मित्त०-मित्र जाति आदि । जाव-यावत् संबन्धियो से । परिवुड़ा-घिरी हुई । रायमाणी-रुदन करती हुई । कदमाणी-क्रन्दन करती हुई । विलवमा णी - विलाप करती हुई । विजयमित्तस्स - विजयमित्र सत्यवाहस्स-सार्थवाह की । लोइयाई-लौकिक । मियकिच्चाई -मृतक-क्रियाओं को । करोतिकरती है । तते णं- तदनन्तर । सा - वह । सुभद्दा - सुभद्रा । सत्थवाही – सार्थवाही । अन्नया कयाती-किसी अन्य समय । लवणसमुद्दोत्तरणं -लवणसमुद्र में गमन । लच्छिविणासंच-लक्ष्मी--धन के विनाश । पोतविणासं च-जहाज़ के डूबने तथा । पतिमरणंच-पति के मरण का । अणुचिंतेमाणी-चिन्तन करती हई । कालधम्मणा-काल-धर्म से । संजत्तासंयुक्त हुई-मर गई । मूलार्थ- तदनन्तर किसी अन्य समय विजयमित्र सार्थवाह ने जहाज़ से गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेदा रूप चारप्रकार की पण्यवस्तुओं को लेकर लवणसमुद्र में प्रस्थान किया, परन्तु लवणसर में जहाज़ पर विपत्ति आने से वह विजयमित्र की उक्त चारों प्रकार की महामूल्य वाली वस्त्र, आभूषण आदि वस्तुएं जलमग्न हो गई, और वह स्वयं भी त्राणरहित एवं शरणरहित होने से कालधर्म-मृत्यु को प्राप्त हो गया। तदनन्तर ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य. श्रेष्ठी और सार्थवाहों ने जब लवणसमुद्र में जहाज़ के नष्ट तथा महामूल्य वाले क्रयाणक के जलमग्न हो जाने पर त्राण और शरण मे रहित विजयमित्र की मृत्यु का वृत्तान्त सुना तब वे हस्तनिक्षेप और बाह्य (उस के अतिरिक्त) भांडसार को लेकर एकान्त स्थान में चले गये। सुभद्रा सार्थवाही ने जिस समय लवणसमुद्र में जहाज़ पर संकट आ जाने के कारण भांडसार के जलमग्न होने के साथ साथ विजयमित्र की मृत्यु का वृत्तान्त सुना तब वह पतिवियोग (१) लता के अनेको अर्थों में से बेल यह अर्थ अधिक प्रसिद्ध एवं व्यवहार में आने वाला है । बेल का अर्थ है - वह छोटा कोमल पौधा जो अपने बल पर ऊपर की ओर उठ कर' बढ़ नहीं सकता। परन्तु प्रस्तुत प्रकरण में परशु (एक अस्त्र जिस में एक डण्डे के सिरे पर अर्द्ध चन्द्राकार लोहे का फाल लगा रहता है, कुल्हाड़ी विशेष) से काटी हुई चम्पक-लता की भांति धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ी, ऐसा प्रसंग चल रहा है, ऐसी स्थिति में यदि लता का अर्थ बेल करते हैं तो इस अर्थ में यह भाव संकलित नहीं होता क्योंकि बेल तो स्वयं जमीन पर होती हैं उस का धड़ाम से जमीन पर गिरना कैसे हो सकता है ? अतः प्रस्तुत प्रकरण में लता का शाखा अर्थ ही उपयुक्त प्रतीत होता है। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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