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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दूसरा अध्याय ] हिन्दी भाषा टीका सहित । हो गया । तते णं- तदनन्तर । से भीमे -- वह भीम नामक । कूडग्गाहे- कूटग्राह । अरणपा- अन्यदा कयातो-कदाचित् = किसी समय । कालधम्मुणा-काल धर्म से । संजुत्ते-संयुक्त हुअा अर्थात् कान कर गया मर गया । तते णं- तदनन्तर । से-वह । गोत्तासे-गोत्रास । दारए -- बालक । बहुणं-- अनेक । मित्तणाइणियालयणसंबंधिपरिजणेणं-भित्र-सुहृद्, ज्ञातिजन; निजक - अात्मीय पुत्रादि, स्वजन पितृव्यादि, सम्बन्धी -- श्वशुरादि, परिजन --दास दासी आदि. के । सद्धि-साथ । संपरिवुड़े-संपरिवृत-घिरा हुआ। रोप्रमाणे-रुदन करता हुया । कंदमाणे -अाक्रन्दन करता हुअा विलवमाणेविलाप करता हुआ । भीमस्स कूडग्गाहस्स-भीम कूटग्राह का । नीहरणं- नीहरण -- निकालना । करेति २ त्ता-करता है करके । बहूई - अनेक । 'लोइयमय किच्चाई--लोकिक मृतक कियाएं । करेति-करता है ॥ मूलार्थ-तदनन्तर उस उत्पला नामक कूटग्राहिणो ने किसी समय नवमास · पूरे हो जाने पर बालक को जन्म दिया । जन्मते ही उस बालक ने महान कणेकटु एवं चीत्कारपूर्ण भयंकर शब्द किया, उस के चीत्कारपण शब्द को सुन कर तथा अवधारण कर हस्तिनापुर नगर के नागरिक पशु यावत् वृषभ आदि भयभीत हुए, उद्वग को प्राप्त हो कर चारों तर्फ भागने लगे। तदनन्तर उस बालक के माता पिता ने इस प्रकार से उस का नामकरगा संस्कार किया कि जन्म लेते ही इस बालक ने महान कर्णकट और च कारपर्ण भीषण शब्द किया है जिसे सुन कर हस्तिनापुर के गौ आदि नागरिक पशु भयभीत हुए और उद्विग्न हो कर चारों तर्फ भागने लगे, इसलिये इस बालक का नाम गोत्रास [गो आदि पशुओं को त्रास देने वाला ] रकाया जाता है । तदनन्तर गोत्रास बालक ने बालभाव को त्यागकर युवास्था में पदार्पण किया । तदनन्तर अर्थात् गोत्रास के युक्क होने पर भोम कूटग्राह किसी समय कालधर्म को प्राप्त हुआ अर्थात् उस की मृत्यु हो गई । तब गोत्रास बालक ने अपने मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सबन्धी और परिजनों से परिवृत हो कर रुदन, आक्रन्दन और विलाप करते हुए कटग्राह का दाह – संस्कार किया और अनेक लौकिक मृतक क्रियाएं की, अर्थात् औद्धदैहिक कर्म किया। टीका-गर्भ की स्थिति पूरी होने पर भीम कूटग्राह की स्त्री उत्पला ने एक बालक को जन्म दिया, परन्तु जन्मते ही उस बालक ने बड़े भारी कर्णकटु शब्द के साथ ऐसा भयंकर चीत्कार किया कि उस को सुन कर हस्तिनापुर नगर के तमाम पशु भयभीत होकर इधर उधर भागने लग पड़ । प्रकृति का यह नियम है पण्यशाली जोव के जन्मते और उस से पहले गर्भ में आते हो पारिवारिक अशांति दूर हो जाती है तथा आसपास का क्षुब्ध वातावरण भी प्रशान्त हा जाता है एवं माता को जो दोहद उत्पन्न होते हैं वे भी भद्र तथा पुण्यरूर ही होते हैं। परन्तु पापिष्ट जीव के आगमन में सब कुछ इस से विपरीत होता है । उस के गर्भ में आते ही नानाप्रकार के उपद्रव होने लगते हैं। माता के दोहद भी सर्वथा निकृष्ट एवं अधर्म --पूर्ण होते हैं, प्रशान्त वातावरण में भयानक क्षोभ उत्पन्न हो जाता है और उस का जन्म अनेक जीवों के भय और संत्रास का कारण बनता है । तात्पर्य यह है कि पुण्यवान् और पापिष्ट जीव आते ही अपने स्वरूप का परिचय करा देते (१) लौकिकमृतकृत्यानि =अग्निसंस्कारादारभ्य तन्निमित्तकदानभोजनादिपर्यन्तानि कर्माणीति भाव: । अर्थात् - अग्निसंकार से लेकर पिता के निमित्त किए गए दान और भोजनादि कर्म लौकिकमृतक कृत्य शब्द से संगृहीत होते हैं । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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