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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दूसरा अध्याय हिन्दी भाषा टीका सहित । [१२७ गडित इन तीनों पदों का कर्मधारय समास है। " - उप्पोलियकच्छे-उत्पीडितकक्षान् उत्पीडिता-गाढतरबद्धा कक्षा - उरोबन्धनं येषां ते तथ तान् " अर्थात् हाथी की छाती में बांधने की रस्सी को कक्षा कहते हैं । उन हस्तियों का कक्षा के द्वारा उदर-बन्धन बड़ी दृढ़ता के साथ किया हुआ है ताकि शिथिलता न होने पावे । "- उद्दामयवंटे-उद्दामित-घण्टान् , उद्दामिता अपनीतबन्धना प्रलम्बिता घण्टा येषां ते तथा तान् . " अर्थात् उद्दामित का अर्थ है बन्धन से रहित, लटकना, तात्पर्य यह है कि झूल के दोनों ओर घण्टे लटक रहे हैं । ___ "-जाणा-मणि-रयण-विविह-गेविज्ज-उतरकंबुइज्जे-नाना-सागरन विविध प्रैवेयक-उत्तरकबुकितान्. नानामणिरत्नानि विविधानि ग्रैवेयकानि ग्रीवाभरणनि उत्तरकच काश्च तनुत्राणविशेषाः सन्ति येषां ते तथा तान् -" अर्थात् वे हाथी नाना प्रकार के मणि, रत्न, विविध भांति के अवयक - ग्रीवाभरण और उत्तरकन्क - झून अादि से विभषित हैं । यदि मणि रत्न पद को व्यस्त न मानकर समस्त (एक मान) लिया जाय तो उसका अर्थ चक्रवती के २५ रत्नों में से "एक मणिरत्न" यह होगा। परन्तु उसका प्रकृत से कोई सम्बन्ध नहीं है। कंठ के भूषण का नाम ग्रैवेयक है ।। अथवा ' -णाणामणिरयणधिविहगेविज्जउत्तरकंचुइज्जे-" का अर्थ दूसरी तरह से निम्नोक्त हो सकता है । "- नानामणिरत्नखचितानि विविधzवेयकानि येषां ते, नानामणिरत्नविविधग्रेवेयकाश्च, उत्तरकंचुकाश्च इति नानामणिरत्नविविधवेय्कउत्तरकंचुकाः, ते संजाताः येषां ते, तानिति भावः -" अर्थात् – हाथियों के गले में ग्रैवेयक डाले हुए हैं, जो कि अनेकविध मणियों एवं रत्नों से खचित थे, और उन हाथियों के उत्तरकंचुक भी धारण किये हुए हैं। ___ "-पडिकप्पिए-परिकल्पितान् , कृतसन्नाहादिसामग्रीकान् -' अर्थात् परिकल्पित का अर्थ होता है सजाया हुआ । तात्पर्य यह है कि-उन हाथियों को कवचादि सामग्री से बड़ी अच्छी तरह से सजाया गया है। '-झय-पडाग-वर-पंचामेल-श्रारूढ-हत्यारोहे-ध्वज-पताका वर-पञ्चापीडारूढ - हत्त्यारोहान् , ध्वजा:-गरुडादिध्वजाः, पताकाः ---गरुडादिवर्जितास्ताभिर्वरा ये ते तथा पञ्च आमेलकाः-शेवरकाः येषां ते तथा प्रारूढा हस्त्यारोहा-महामात्रा येष ते तथा-" अर्थात जिस पर गरुड़ आदि का चिन्ह अंकित हो उसे ध्वजा और गरुड़ादि चिन्ह से रहित को पताका कहते हैं । अामेलक - फूलों की माला, जो मुकुट पर धारण की जाती है, अथवा शिरो- भूषण को भी अामेलक कहते हैं । तात्पर्य यह है कि उन हस्तियों पर ध्वजा --- पताका लहरा रही है और उन को पांच शिरो--- भूषण पहनाए हुए हैं तथा उन पर हस्तिपक (महावत) बैठे हुए हैं। ___"-गहियाउहपहरणे-" गृहीतायुधप्रहरणान , गृहीतानि श्रायुधानि प्रहरणार्थ येष, अथवा आयुधान्यक्षेप्याणि प्रहरणानि तु क्षेप्याणीति –” अर्थात् सवारों ने प्रहार करने के लिये जिन पर आयुध-शस्त्र ग्रहण किये हुए हैं। यदि गृहीत-पद का लादे हुए अर्थ करें तो इस समस्त पदका - प्रहार करने के लिए जिन पर आयुध लादे हुए हैं --" ऐसा अर्थ होता है अथवा - आयुध का अर्थ है-वे शस्त्र जो फैंके न जा सकें गदा, तलवार, बन्दूक आदि। तथा प्रहरण शब्द से फेंके जाने वाले शस्त्र, जैसे-तीर, गोला, बम्ब आदि का ग्रहण होता है । इस अर्थ - विचारणा से उक्त - वाक्य का-जिन पर आयुध और प्रहरण अर्थात् न फैके जाने वाले और फैंके जाने वाले शस्त्र लदे हुए. हैं, या सवारों से ग्रहण किये हुए हैं, -"यह अर्थ सम्पन्न होता है। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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