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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir १२४] श्री विपाक सूत्र - - [दूसरा अध्याय गुडियगत्त', बुरणयं वज्झपाणिपीयं, तिलंतिलं चैव द्विज्जमाणं, काकणिमसाई खाविर्यंत पावं, कक्करसहिं हम्ममा, अगनरनारिसंपरिवुड़, चच्चरे चच्चरे खंड पडहरणं उग्योसिज्जमाणं इमं च गं एयारूवं उग्घोसणं सुणेति – नो खलु देवाणुपिया ! उज्झियगस्स दारगस्स केई गया वा राय पुत्ते वा अवरज्झति, अप्पणी से सयाई कम्पाई अवरज्यंति । पदार्थ - तत्थ णं - वहां पर । बहवे – अनेक । हत्थी - हाथियों को । पासति - देखते हैं बो कि । सन्नद्धबद्ध-वग्मियगुडिते - युद्ध के लिये उद्यत हैं, जिन्हे कवच पहनाये हुए हैं तथा जिन्हों ने शरीर रक्षक उपकरण [ भूला ] आदि धारण किये हुए हैं । उपपोलिप-कच्छे दृढ़ उरोबन्धन - उदरबन्धन से युक्त हैं । उद्दामियघंडे -- जिन के दोनों ओर घण्टे लटक रहे हैं । णाणामणिरयर विवहगेविज्जउत्तरकं चुहज्जे- नाना प्रकार के मणि, रत्न, विविध भांति के ग्रैवेयक - ग्रीवा के भूषण तथा बखतर विशेष से युक्त । एडिकप्पिते - परिकल्पित-विभूषित अर्थात् कवचादि पूर्ण सामग्री से युक्त । झड़ागवरपंच मेलश्रारूढ हत्थारोहे - ध्वज और पताकाओं से सुशोभित, पंच शिरोभूषणों से युक्त, तथा हस्त्यारोहों - हाथीवानोंहाथी को हांकने वालों से युक्त, अर्थात् उन पर महावत बैठे हुए हैं । गहियाउहपहरणे – आयुध और प्रहरण ग्रहण किये हुए हैं अर्थात्- - उन हाथियों पर आयुध ( वह शस्त्र जो फैंका नहीं जाता, तलवार आदि ) तथा प्रहरण वह शस्त्र जो फैंका जा सकता है तीर आदि) लदे हुए हैं अथवा उन हाथियों पर बैठे हुए महावतों ने आयुधों और प्रहरणों को धारण किया हुआ है । अणे य - और भी । तत्थ वहां पर । बहवे -- बहुत से । आसे - अश्वों घोड़ों को । पासति - देखते 1 जो कि । सन्नद्धबद्रवम्मियगुडितेयुद्ध के लिए उद्यत हैं, जिन्हें कवच पहनाये गये हैं, तथा जिन्हें शारीरिक रक्षा के उपकरण पहनाये गये हैं । श्रविद्धगुड़ - सोने चांदी की बनी हुई झूल से युक्त । ओसारियपकवरे - लटकाये हुए तनुत्राण से युक्त । उत्तरकं बुझ्य श्रोचू जमुहचं डाधर- चामर - धासक परिमंडिकड़ीए:- वखतर विशेष से युक्त, लगाम से अन्वित मुख वाले, क्रोध पूर्ण अधरों से युक्त, तथा चामर, स्थासक (आभरण विशेष) से परिमंडित-विभूत्रित है कटि -भाग जिनका ऐसे । आरुढ प्रस्तारा - जिन पर अश्वारोही घुड़सवार आरूढ़ हो रहे हैं । गहिया उहपहरणे – आयुध और प्रहरण ग्रहण किए हुए हैं अर्थात् उन घोड़ों पर श्रायुध और हरण लादे हुए हैं अथवा उन पर बैठने वाले घुड़सवारों ने आयुधों और प्रहरणों को धारण किया हुआ है । अणे य - और भी । तत्थ णं-वहां पर । पुरिसे - पुरुषों को। पासति - देखते हैं, जोकि । सन्नद्धबद्धवमियकवए – कधच को धारण किये हुए हैं जो कवच दृढ़ बन्धनों से बन्धे हुए एवं लोहमय कलकादि से युक्त हैं । उप्पोलिय सरासणपटीए जिन्हों ने शरासनपट्टिका - धनुष खँचने के समय हाथ की रक्षा के लिये बांधा जाने वाला चर्मपट्ट चमड़े की पट्टी, कस कर बांधी हुई है पिविज्जे- जिन्हों ने ग्रैवेयक- कण्ठाभरण धारण किये हुए हैं । विमलवरबद्धचिधपट्टे - जिन्होंने उत्तम तथा निर्मल चिन्हपट्ट - निशानी रूप वस्त्र खंड धारण किए हुए हैं । गहियाउहपहरणे - जिन्हों ने आयुध और प्रहरण ग्रहण किये हुए हैं ऐसे पुरुषों को देखते हैं । तेसिं च णं - उन । पुरिसाणं = पुरुषों के । मयं मध्यगत । एर्ग- एक । पुरिसं - पुरुष को । देखते हैं, वोडगबंधणं - गले और दोनों हाथों को मोड़ कर पृष्ठभाग में दोनों हाथ रस्सी से बान्धे हुए हैं । उक्कित्तकरणनासं - जिस के कान और नाक कटे हुए हैं । हतुप्पि - यगतं - जिस का शरीर घृत से स्निग्ध किया हुआ है । वज्झकरकडिजुर्यानयत्थं - जिस के कर और कटिप्रदेश में वध्यपुरुषोचित वस्त्र-युग्म धारण किया हुआ है । अथवा बन्धे हुए हाथ जिस के कडियुग (हथ - 1 1 पासति - जिस के 1 For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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