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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir * कर्म-मीमांसा * (लेखक-पण्डितप्रवर श्री स्वामी फूल चन्द जी महाराज पंजाबी, श्रमण) जैन शास्त्रों का विषयनिरूपण सर्वांगपूर्ण है। जड़-चेतन, आत्मा-परमात्मा, दुःख-सुख, संसार-मोक्ष, आम्रव-संवर, कर्मबन्ध तथा कर्मक्षय इत्यादि समस्त विपयों का जितना सूक्ष्म गंभीर और सुस्पष्ट विवेचन जैनागमों में है अन्यत्र मिलना कठिन है। जैन विचारधारा विचारजगत में और आचार-जगत् में एक अपूर्व प्रकाश डालने वाली है। हम साधारणरूप से जिस को विचार समझते हैं वह विचार नहीं, वह तो स्वच्छन्द मन का विकल्पजाल है । जो जीवन में अद्भुतता नवीनता और दिव्य दृष्टि उत्पन्न करे वही जैन विचारधारा है। जैनसूत्र-भूले भटके भव्य प्राणियों के लिये मार्गप्रदर्शक बोर्ड हैं, उन्मार्ग से हटा कर सन्मार्ग की ओर प्रगति कराने के लिये ही अरिहंत भगवन्तों ने मार्गप्रदर्शक बोर्ड स्थापन किया है। सूत्र वही होता है जो वीतराग का कथन हो । तर्क या युक्ति से अकाट्य हो । जो प्रत्यक्ष या अनुमान से विरुद्ध न हो । कुमार्ग का नाशक हो, सर्वाभ्युदय करने वाला हो ओर जा सन्मार्ग का प्रदर्शक हो । इत्यादि सभी लक्षण श्री विपाकसूत्र में पूर्णतया पाए जाते हैं अतः जिज्ञासुओं के लिये प्रस्तुत सूत्र उपादेय है। इस सूत्र का हिन्दी अनुवाद प्रतिभाशाली पण्डितप्रवर मुनि श्री ज्ञान चन्द्र जी ने किया है । अनुवाद न अति संक्षिप्त है और न अति विस्तृत । अध्ययन करते हुए जिन २ विषयों पर जिज्ञासुओं के हृदय में संदेह का होना संभव था उन २ विषयों को मुनि जी ने अपनी मस्तिष्क की उपज से पूर्वपन उठा कर अनेकों प्रामाणिक ग्रन्थों के प्रमाण देकर शंकास्पद स्थलों को उत्तरपक्ष के द्वारा सुम्पष्ट कर दिया है । इसी से लेखक की प्रामाणिकता सिद्ध होती है । विपाकसूत्र अङ्ग सूत्रों में ग्यारहवां सूत्र है । इस सूत्र में किस विषय का वर्णन आता है ? इस का उार यदि अत्यन्त संक्षेप से दिया जाय तो "विपाक"* इस शब्द से ही दिया जा सकता है अर्थात यह शब्द सुनते ही सुज्ञजनों को विपय की प्रतीति हो सकती है । . . प्रस्तुत सूत्र के बीस अध्ययन हैं । पहिले के दस अध्ययनों में अशुभ कर्म-विपाक का वर्णन है । पिछले दस अध्ययनों में शभकर्म-विपाक वर्णित हैं। कर्मसिद्धान्त को सरल, सुगम तथा सुस्पष्ट * चूर्णीकार ने विपाकसूत्र का निर्वाचन इस प्रकार किया है : विविधः पाकः, अथवा विपचनं विपाकः कर्मणां शुभोऽशुभो वा । विपचनं विपाकः शुभाशुभकर्म परिणाम इत्यर्थः । जम्मि सुत्ते विपाको कहिज्जइ तं विपाकसुत्तं । तत्प्रतिपादक श्रुतं विपाकश्र नं । इन पदों का भावार्थ निम्नोक्त है नाना प्रकार से पकना, विशेष कर के कर्मों का शुभ अशुभ रूप में पकना, अर्थान् शुभाशुभ कर्मपरिणाम को ही विपाक कहते हैं, जिस सत्र में विपाक कहा जाए उसे विपाकसूत्र अथवा विपाकश्रुत कहते हैं। For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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