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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रा विपाक सूत्र प्रथम अध्याय यावि होत्था । तते णं सा मियादेवी भगवं गोयमं एवं क्यासी-तुब्भे णं भंते ! इह चेव चिट्ठह जा णं अहं तुभ मियापुत्तं दारयं उवदंसेमि त्ति कट्ट जेणेव भत्तपाण-घरए तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता वीत्थपरियट्ट करेति, करेत्ता कटु-सगड़ियं गेण्हति २ विपुलस्स असणपाण-खातिम-सातिमस्स भरेति २ तं कटुसगडियं अणुकड्ढपाणी २ जेणेव भगवं गोतमे तेणेव उवागच्छति २ भगवं गोतमं एवं वयासी-एह णं तुम्भे भंते! ममं [मए सद्धिं ] अणुगच्छह जा णं अहं तुभं मियापुत्तं दारयं उवदंसेमि । तते णं से भगवं गोतमे मियं देविं पिट्ठो समणुगच्छति । तते णं सा मियादेवी तं कट्ठसडियं अणुकड्ढमाणी २ जेणेव भूमिघरे तेणेव उवागच्छति २ चउप्पुडेणं वत्थेणं मुहं बंधमाणी भगवं गोतम एव वयासी-तुब्भे वि य णं भंते ! 'मुहपोत्तियाए मुहं वन्धह । तते णं भगवं गोतमे मियादेवीए एवं वुत्ते समाणे मुहपोत्तियाए मुहं बंधति । तते णं सा मियादेवी पर मुही भूमीघरस्स दुवार विहाड़ेति । तते णं गंधो निग्गच्छति । से जहा नामए अहिमडे हि वा जाव ततो वि य णं अणिढ़तराए चेव जाव गंधे पएणत्ते । पदार्थ-तते णं-तदनन्तर । भगवं गोतमे- भगवान गौतम स्वामी ने । मियं देविंमृगादेवी को। एवं वयासी-इस प्रकार कहा। देवाणुप्पिए !-हे देवानुप्रिये ! अर्थात् हे भद्रे ! । उत्तर- शास्त्रों में व्यवहार पांच प्रकार के कहे गये हैं। (१) आगम, (२) श्रुत, (३ आज्ञा (४) धारणा और (५) जीत । मोक्षाभिलाषी अात्मा की प्रवृत्ति का नाम व्यवहार है । केवल-ज्ञानी, मन:पर्याय-ज्ञानी, अवधिज्ञानी, चतुर्दशपूर्वी दशपूर्वी और नवपूर्वी की प्रवृत्ति को आगम व्यवहार कहा गया है आगम-व्यवहारी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसारी होते हैं । इन पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं होता है । आगम व्यवहार के अभाव में शास्त्रों के अनुसार प्रवृत्ति करने वाले श्रुत व्यवहारी होते हैं । इनके लिये मात्र शास्त्रीय मर्यादा हो मार्ग-दर्शिका होती है । जहां शास्त्र मौन है, वहां द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावानुसारो गुरु आदि द्वारा दिया गया आदेश आज्ञा-व्यवहार है। आज्ञाव्यवहारी को गुरु चरणों द्वारा सम्प्राप्त आज्ञा का हो अनुसरण करना होता है । अाज्ञा व्यवहार की अनुपस्थिति में गुरु परम्परा से चलित व्यवहार का नाम धारणा व्यवहार है । धारणा-व्यवहारी को पूर्वजों की धारणा के अनुसार ही प्रवृत्ति करनी पड़ती है। द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव और संहनन आदि का विचार कर गीतार्थ मुनियों द्वारा निर्धारित व्यवहार जीत व्यवहार होता है , जीत व्यवहारी के लिये अतीत समाचारी मान्य होने पर भी वर्तमान संघसमाचारी का पालन करना आवश्यक होता है । भगवान गौतम आगम व्यवहारी थे । आगमव्यवहारियों पर श्रुत व्यवहार लागू नहीं होता । अतः भगवान गौतम का महारानी मृगादेवी से किया गया संलाप आदिक व्यवहार शास्त्र विरुद्ध नहीं है । (१) मुखपोतिका-मुखप्रोञ्छनिका, रजः -- प्रस्वेदादि-प्रोञ्छनाथे यद् वस्त्रखण्डं हस्ते ध्रियते सा मुखप्रोञ्छनिकेत्युच्यते । For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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