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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org (६) श्री विपाक सूत्र [प्रकाशकीय निवेदन ऊपर के छः नए सदस्यों में चार बहिनें हैं। इन बहिनों में धार्मिक अनुष्ठानों के लिए जो उत्साह दृष्टिगोचर हो रहा है, उस का श्रेय हमारी महामान्य जैनधर्मोपदेशिका बालब्रह्मचारिणी स्वनामन्या महासती स्वर्गीय श्री चन्द्रा जी महाराज की शिष्यानुशिष्याएं संस्कृतप्राकृत विशारदा, विदुपी श्री लज्जावती जी महाराज तथा तपस्विनी, समयज्ञा श्री सौभाग्यवती जी महाराज कोही है। इन ही के पावन उपदेशों से उपरोक्त बहिनों के हृदयों में धार्मिकता एवं सरित्रता का संचार हो पाया है । फलतः ये बहिनें धार्मिक प्रभावना के निमित्त धार्मिक कार्यों में यथावसर अपना पुण्य सहयोग सदा देती रहती हैं । अतः हम पूज्य महासती जी महाराज के तथा इन सभी बहिनों केन्त कृतज्ञ हैं । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir इसके अतिरिक्त विपाकसूत्र के प्रकाशन में शाहकोटनिवासी लाला रामशरणदास पद्मराज जी जैन ने २५१), पट्टीनिवासी लाला पन्नालाल टेकचन्द्र जी जैन ने १२५), सुलतानपुर निवासी श्री दुर्गादास सरदारी लाल जी जैन ने १५०), श्री रूपचन्द जी जैन ने १००) तथा भक्त श्री कर्म चन्द जी जैन ने ५) रुपए देकर श्री विपाक सूत्र की प्रेसकापी बनाने में हमें सहयोग दिया है । हम शास्त्रमाला की ओर से इन के भी धन्यवादी हैं। आदरणीय पण्डित श्री झण्डूलाल जी शास्त्री के भी हम अभारी हैं। आप का प्रूफ संशोधन में हमें सहयोग प्राप्त होता रहा है I 1 अन्त में हम उन सब महानुभावों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं, जिन्हों ने श्री विपाकसूत्र के प्रकाशन में तन से, मन से तथा धन से सहयोग देने का अनुग्रह किया है । मंत्री - जैनशास्त्रमालाकार्यालय, जैन स्थानक, लुधियाना (पंजाब) For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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