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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir प्रथम अध्याय हिन्नो भाषा टीका सहित । [२७ नगर से चला । जाव पज्जुवासति-यावत् समवसरण में जाकर भगवान् की पर्युपासना करने लगा। तते ण तदनन्तर । से- वहा जाति अंधे पुरिसे-जन्मान्ध पुरुष । तं महया जणादं च-मनुष्यों के उस महान् शब्द को । जाव-यावत् । सुणेत्ता-सुनकर । तं पुरिसं उस पुरुष को एवं वयासी- इस प्रकार कहने लगा । देवाणुपिया! -हे देवानुप्रिय ! । किराणं-क्या । अज्ज - अाज । मियग्गामे - मृगाग्राम में । इंदमहे इ वा -इन्द्रमहोत्सव है जाा -यावत् । निगच्छति -नागरिक जा रहे हैं ? । तते णं तदनन्तर । से पुरिसे वह पुरुष । तं जाति प्रधपुरिम-उप जन्मान्ध पुरुष को । एवं वयासी - इस प्रकार कहने लगा देवा०! -- हे देवानुप्रिय ! । खलु -निश्चय ही । नो इंदमहे याव निग्गहे- ये लोग इन्द्रमहोत्सव के कारण बाहर नहीं जा रहे हैं किन्तु देवानुप्पिया !-हे देवानुप्रिय ! । एवं खलु -इस प्रकार निश्चय ही । समणे जाव विहरति - श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधार रहे हैं । तते णं एए जाव निगाच्छंति-उसी कारण से ये लोग वहां जा रहे हैं । तते । - तदनन्तर । से - वह । जाति अंधे पुरिसे - जन्मान्ध पुरुष । तं पुरिस - उत्तम पुरुष को । एवं वयासो - इस प्रकार कहने लगा । देवाणुपिया! -- हे देवानुप्रिय ! । अम्हे वि हम दोनों भी गच्छामो - चलते हैं और चल कर सभरणं --श्रमण । भगवं - भगवान् की। जाव यावत् (हम) । पन्जुवासामो - पर्युपासना-सेवा करेंगे । तते णं - तत् पश्चात् । सेवह । जाति अन्ये पुरिसे -जन्मान्ध पुरुष । दंडरणं-दण्ड द्वारा । पुरतो-आगे को । पगढिज्जमाणेले जाया जाता हुआ । जेणेव -जहां। समणे भगवं महाबोरे-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी विराजमान थे । तेणेव-वहां पर । उवागते-आ गया । उवागच्छित्ता - वहां आ कर वह । तिक्खुत्तो- तीन वार । आयाहिणं पयाहिणं-दक्षिण अओर से प्रारम्भ करके प्रदक्षिणा (आवर्तन)। करोति- करता है । करेत्ता - प्रदक्षिणा करके । वदति- वन्दना करता है । नमसति-नमस्कार करता है। वंदित्ता नमंसित्ता- वन्दना तथा नमस्कार कर के । जाव- यावत् । पज्जुवासति पयुपासना-सेवा में उपस्थित होता है। तते णं तत् पश्चात् । समणे श्रमण भगवान् महावीर । विजयस्स-विजय और । तीयसे-उसपरिषद् के प्रति । धम्ममाइक्खई - धर्मोपदेश करते हैं । परिसा जाव पड़िगया-धर्मोपदेश सुन कर परिषद् चली गई । विजए वि - विजय राजा भी । गए - चला गया। तेणं कालेणं-उस काल में । तेणंसमएणं- उस समय में । समणस्स श्रमण भगवान् महावीर के । जे? अंतेवासी-प्रधान शिष्य । इंदभूती णामं अणगारे-इन्द्रभूति नामक अनगार । जाव विरहति - यावत् विहरण कर रहे हैं । तते णंतदनन्तर । से वे । भगवं भगवान् । गोतमे - गौतम स्वामी । तं -- उस। जातिअंधपुरिसं-जन्मान्ध पुरुष को । पासति -- देखते हैं पासि ता-देखकर । जायसड्ढे-जातश्रद्ध-प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले भगवान् गौतम । जाव -- यावत् । एव वयासी-इस प्रकार बोले । भंते ! हे भगवन् !। अस्थि णं केह पुरिस- क्या कोई ऐसा पुरुष भी है, जो कि । जातिअंधे- जन्मांध हो ? । जायअन्धारूवे --जन्मान्धरूप हो ? । हता अस्थि -भगवान् ने कहा, हां, ऐसा पुरुष है । भन्ते ! - हे भदन्त ! । कहिं णं-कहां है । से पुरिसे-वह पुरुष, जो कि । जातिअंधे- जन्मान्ध तथा । जायअन्धारूवे - जन्मान्धरूप है ? । मूलार्थ - उस मृगाग्राम नामक नगर में एक जन्मान्ध पुरुष रहता था, आंखों वाला एक मनुष्य उस की लकड़ी पकड़े रहा करता था, उस लकड़ो के सहारे वह चला करता था, उस के शिर के बाल अत्यन्तात्यन्त विखरे हुए थे, अत्यन्त मलिन होने के कारण उस के पीछे मक्खिों के झुण्डों के झुण्ड लगे रहते थे, ऐसा वह जन्मान्ध परुष मृगाग्राम के प्रत्येक घर में भिक्षावृत्ति से अपनी आजीविका चला रहा था। उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी नगर के बाहर चन्दनपादप उद्यान में पधारे उन के पधारने For Private And Personal
SR No.020898
Book TitleVipak Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanmuni, Hemchandra Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year1954
Total Pages829
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size20 MB
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