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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 米米米米米米米米米米米米米米米米米米 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ये पुस्तक छपावका कारण ये है के सर्वजेन धर्मावलंबि साधसाध्वी श्रावकश्राविका के पढ़णेसे ज्ञानकी टही होगा इस खातर ४५ आगमसूत्र और टीका और बालावबोधसहित ५०० पुस्तक छपाके ५०० ठीकाने भंडार कीया इस्म े महान् ज्ञानका वृद्धी होगा और पंडतजनोसे एही प्रार्थना हेके अच्छीतरेसे पढेपढावे शुणेगुणावे जयणाकर के और विनयकरके रख और यह श्रीसिद्धान्त पंचागौ प्रमाण संग्रहकीया और इसमे चरमचक्षु करके भूलचुक रहगया होय तो मिकामिदुकर्ड देताड और श्रीसंत्रसे यह विनति हे की जीस बखत बाचे उस बखत जो भुलचुक नौकसे तो पंडतजनोसे संसोधन कराय लेवे मेरेपर कृपा करके इह प्रार्थना अंगीकार करना और भंडारकरी भई पुस्तक कोइ बेचना नहीं कोइ खरीद करेनही करतो २४का गुनेगार संघका गुनागार होगा और मेरा परिचे के वास्ते अपना पूरव वंसावली लोखता ॐ पछिम देसमे किसनगढ़ के वासी प्रपिता श्रीलश्रीयुक्त दुगडगोत्री वृद्धशाखा श्रीलश्रीवीरदासजी संवत् १८० २की सालमे पूरबदेस मे आए तत्पुत्र श्रीश्रीयुक्त बुधसिंघ जौ तत्पुत्र श्रीलश्रीयुक्त प्रतापसिंघ जी चतुर्थ सहधर्मचारणिगोलाकार विभुशित श्रीमहताव कुबरवीवोद्वादश व्रतधारिका तत्पुत्र लघु श्रीरायधनपतसिंघ बहादुरने वडा परिश्रम से संसोधन कराया है और श्रीभगवान बीजेजीने संशोधन करा । संवत १६३३मिति भादो शुदी । मह अजीमगंज राय धनपतसिंहवाहादुर । For Private and Personal Use Only 米米米米米米米米米米米米米米米米米米
SR No.020897
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhagvan Vijay
PublisherCalcutta Vishvavidyalaya
Publication Year1877
Total Pages287
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size13 MB
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