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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वि०सु० २०३ भाषा www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्थकरेपडिलाभे माणुस्माउनिवड हंउप्पण से जहा सुबाहुस्स नावमहाविदेहे सिज्झिहिति मु चिहिंतिपरिनिव्याहिंति सव्वदुक्वाणमंतं करिहिंतिवित्तियं अभयण सम्मत्तं । २ । तञ्च स्वउक्खेव श्रवौरंपुरंनयरं मणोरमंउज्जाणं वीर कण्हमित्तेराया सिरिदेवी सुजातेकुमारे बलसिरीपा मोक्वाण' पंचसया सामीसमोसरिए पुष्वभवपुच्छा उसुयारेण्यरे उस दत्त गादावई पुण्फ दत्त राणी प्रमुख५०० से पट्टराणी भगवंतसमोसख्या श्रावकधर्मांगीकारकस्यो पूर्व भवभगवंतने गौतमपूच्या महाविदेहक्षेत्र नेविषे पुड रगिणीनामानगरी विजयनामाकुमारमहाविदेहक्षेत्रने विषेजुगवाड विहरमांनतीर्थंकरप्रतिलाभ्या प्रतिलाभतांधकामनुष्यनोमाऊ खोवांध्यो इहांऊपनो शेषसुबाहुकुमारनीपरजाणिवो यावत् महाविदेहक्षेत्रनेविषे सौभस्य केवलज्ञांनपामी सर्बज्ञहस्ये सर्वकर्मना दुखक्षयकरीनेशीतलीभूतस्य शरीरमाणासीदुग्खनो अंतकरिस्य बीजाअध्ययनना अर्थसमाप्तथयो । २ | वीजा अध्ययननो अधिकार कहेछे बीरपुरनगरमनोरमनामाउद्यान वीरकण्ड मित्रराजा श्रीदेवीतेहने राणोजातनामाकुमारने बलश्रीप्रमुख ५०० पांचसे For Private and Personal Use Only
SR No.020897
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhagvan Vijay
PublisherCalcutta Vishvavidyalaya
Publication Year1877
Total Pages287
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size13 MB
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