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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra विटले. ११२ सूत्र भाषा 張製鮮鮮類 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्वयणिहिंचन्ति देवभांडागारं अणुव ढिस्मामित्ति वृद्धिनेष्यामि अतिकट्टु एवं कृत्वा वाइयंति उपयाचितं वाणित्तएत्ति उपया यणिहिं'च अणुवडृ स्मामित्तिकट्ट उववाय उवाइणित्तए एवं संपे२ कल्ल जावजलते जेणेवसागर दत्तेसत्थवाहे तेणेवड०२ सागरदत्तं सत्थवाह एवंव० एवं खलु हंदे ० तुम्मेहिं सत्थिंजाव णपत्तातंदू त्थामिणंतेदेवा॰ तुम्भेव्हिंअम्भणुखाया जावडवाइणित्तए तरणंसेसागरदत्ते सत्यवाहे गंगादत्त भारि यंएवंव० ममंपिणंदेवा एसच्चैवमणोर हे कहम तुमंदारगंवादारियां वा पयारज्जाभिगंगदत्तं भारि वोकरीने द्रष्टवस्तुनो याचबोतेयाचस्यो एहवोचितवेचिंतवीने कालप्रभात सूर्य उगे जिहां सागर दत्तसार्थवाह तिहां आवेद्यावीने सागरदत्तसार्थवाहने घूमकहे इमनिच हं अहो देवानुप्रिया तुझ्संघाते भोग भोगव्यापुगकोरू एकर्टून पांमीतेमाट माहरो छाछे अहोदेवानुप्रिया तुमारीचाज्जायेकरी यावत्यचसमीपेजईने दृष्टवस्तुनोयाचबोतेयाचस्यों तिवारपछी तैसागरदन्तसार्थवाहतेगंग दवाभार्याप्रते घूमकहे मुझनेपदेिवानुप्रिया एहजमनोर्थके किमइतु कुमार तथाकुमारी प्रसवोसजणीस गंगदत्त भार्या अर्थ For Private and Personal Use Only **********
SR No.020897
Book TitleVipak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTribhagvan Vijay
PublisherCalcutta Vishvavidyalaya
Publication Year1877
Total Pages287
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vipakshrut
File Size13 MB
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