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________________ S Maham An Kende Acharya kaila n mandi विक्रम चरित्रं ॥ ४५ ॥ KA%A6%ESORT धनंजयाख्ययक्षेशकृतसान्निध्यबन्धुरः । सुरासुरचमत्कारकरादारमहोत्सवः ॥ ५० ॥ सान्वय प्रभावनाभिर्यक्षेन्द्रकृताभिः सुकृताब्धिभिः । वैधर्मिकैरपि स्तुत्यं जनयजिनशासनम् ॥ ५१ ॥ भाषांतर पुरादगुरुमगाभूपः सिद्विलोभनरूपभाक् । भेजे भवशिरःशूलं मूलं ज्ञानतरोव्रतम् ॥ ५२ ।। ___ अन्वयः-(अथ) धनंजय आख्य यक्ष ईश कृत सानिध्य बंधुरः, सुर असुर चमत्कार कर उदार महोत्सवः, ।। ५० ॥ यक्ष इंद्र कुताभिः, सुकृत अधिभिः प्रभावनाभिः, वैधर्मि के: अपि स्तुत्यं जिन शासनं जनयन, ॥ ५१ ॥ सिद्धि लोभन रूप भाक् भूपः पुरात् गुरुं अगात्, भव शिरः शूलं, ज्ञान तरोः मूलं व्रत भेजे. ॥ ५२ ।। प्रिभिर्विशेषकं ।। अर्थ--पछी धनंजय नामना यझेंद्रे करेली सहायथी मनोहर थयेलो, तथा देवो अने दानवोने पण आश्चर्य उपजावनारा उत्तम महोत्सवबाळो, ॥ ५० ॥ अने यझेंद्रे करेली, पुण्यना महासागरसरखी प्रभावनाथी अन्यदर्शनीओने पण प्रशंसवालायक जिनशासनने करतो थको, ।। ५१ ।। मुक्तिने ललचावनारां रूपवाळो ते विक्रमराजा नगरमाथी गुरुमहाराज पासे गयो, (अने) संसारना मस्तकमां शूल उपजावनालं, तथा ज्ञानरूपी वृक्षना मूलसर चारित्र तेणे अंगीकार कयु.॥५२॥ त्रिभिर्विशेषकं ।। नृचन्द्रे चन्द्रसेनेऽथ नत्वा नगरगामिनि । विजहार महीं राजमहर्षिर्गुरुभिः सह ॥ ५३॥ __ अन्वयः-अथ नृ चंद्रे चंद्रसेने नत्वा नगरगामिनि राज महर्षिः गुरुभिः सह महीं विजहार. ।। ५३ ॥ ___ अर्थ:-पछी मनुष्योमा चंद्रसरखो ते चंद्रसेन राजा (तेमने ) बांदीने नगरमा गयाबाद ते विक्रमराजमहर्षि गुरुमहाराजनी साथे | 8/ GOLCANCPNACANADA For Private And Personal Use Only
SR No.020895
Book TitleVikrambhup Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVardhamansuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1929
Total Pages50
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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