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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir সিন্ধু हिन्दुस्तान और मिसर वारः गर्म देसों की नदियों में तीस तीस फट तक लंबे मगर और घड़ियाल होते हैं और ऐसे जोरावर कि आदमी तो क्या गाय भैस को भो खींच ले जाते हैं ॥ ये भी सो के लग भग अंडे देते हैं। पर अक्सर सांप खा जाते हैं इस से बहुत बढ़ने नहीं पाते हैं । मछलो हड्डी वालों की चौथो किसम में मछली है। वो पानी में रहती है। इन में और ऊपर लिखी हुई तीनों किसमों में यह फ़र्क है कि वो तो फेफड़े से नाक और मुंह की राह सांस लेते हैं और इन के फेफड़ा नहीं होता है। गले में दो छेद रहते हैं जिन्हें गलफड़ा कहते हैं और उन्हीं छेदों से सांस लेने का काम निकलता है । कोई कोई मछली बहुत सुन्दर बलकि सुनहले रुपहले रंग की होती है। और आंखें भी इन की निराले तार की रहती हैं। जो हमारी तुम्हारी सो होतो तो उन को पानी में कुछ न दिखलाई देता । ये बोलती नहीं और न इन के बनाने वाले ने इन को कान दिया। तो भी पानी के लगाव से ये पावाज़ मालम करलेती हैं। क्योंकि सिखलाने से घंटी बजाते ही पानी पर इकट्ठा हो जाती हैं ॥ मछली भी अंडे से निकलती है। और एक एक मछलो लाखों अंडे देती है। धप को गर्मी से पकते हैं। थोड़े बहुत पर सब मछलियों के रहते हैं। चिडिया जिस ढब अपने परों से हवा पर उड़ती है। मछली उसी ढब अपने परों से पानी पर तैरने में सहारा पाती है। और जैसे चिड़िया अपनी दुम से हवा पर मुड़ती है। वैसेही मछली पानी पर अपनी दुमसे नाव को पतवार का काम लेती है। ___ अमरिका में ईल मछली पांच फट के लग भग लंबी होती है। जो किसी आदमो या जानवर के बदन से वह छ जावे तो For Private and Personal Use Only
SR No.020894
Book TitleVidyankur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaja Shivprasad
PublisherRaja Shivprasad
Publication Year1886
Total Pages89
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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