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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहिला हिस्सा जो पानी में नहीं रहते वह अक्सर पेड़ों पर रहा करते हैं। ज़मीन पर रहने वाले बहुत कम हैं ॥ पानी में रहने से यह मतलब नहीं है कि रात दिन वह मछली की तरह पानी हो में रहा करते हैं । बतक और सब किस्म की मुगाबियां पानी के पखेरू में चीन कब्जे वगरः ये ज़मीन के पखेरू पानी पर नहीं तेर सकते हैं। उन के बनाने वाले ने उन के पंजे खुले रक्खे हैं जिस में पेड़ों की टहनियों पर अच्छी तरह जम सके । और पानी के पखेरुओं के पंजे एक चमड़े से जुड़े रक्खे हे जिस में वो तैरने के वक्त जेसे नाव का काम डांड से निकलता है उस से सहारा पावें ॥ पखेरुओं की दुम के पास एक थैली सी होती हे । और उस में कुछ तेल की तरह चिकनी चीज़ भरी रहती है ॥ पखेरु उस को अपने परों पर लगा लिया करते हैं । कि जिस से उन के पर मेह पानी से भीग कर ख़राब नहीं होते हैं। हर साल इन के पुगने पर गिर कर नये निकल आते हैं। और इसी को कुरीज़ कहते हैं । __ जिन पखेरुओं की खराक कीड़े मकोड़े अनाज दाने फल फल हैं। वो अक्सर मिलजुल कर रहा करते हैं और आदमी से जल्द हिल जाते हैं। जो पखेरू शिकार मारकर खाते हैं। वो पहाड़ों की चोटियों पर या भारी जंगलों में घोंसले बनाकर अपने जोड़े के साथ रहा करते हैं दूसरों को अपने पास नहीं फटकने देते हैं। इन शिकारी पखेरुओं में बाज़ और जर की ताकत और जुर अत मशहूर है । दाम भी उनका बहुत जियाटा हे ॥ जिसके पास रहते हैं । उसके लिये आसमान से उड़ती चिड़ियां पकड़ लाते हैं। बादशाहों के हाथ पर बेठते हैं । आंखें उन की बंद रखते हैं जब शिकार पर छोड़ना मंजर होता है खाल देते है वो बिजली की तरह उड़कर उसे For Private and Personal Use Only
SR No.020894
Book TitleVidyankur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaja Shivprasad
PublisherRaja Shivprasad
Publication Year1886
Total Pages89
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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