SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहला हिस्सा और तब खत्तों में और कोठियों में भर देते हैं। जिस को जिस अनाज का आटा दकीर होता है । चक्कियों में पिसवा लेता है ॥ जिस तरह इस देश में कहीं २ पानी के ज़ोर से पनचक्कियां चलती हैं । श्रंगरेज़ों के देस में हवा और धुएं के ज़ार से भी चला करती है ॥ इस देश में अक्सर ओ गेहूं ज्वार बाजरा धान कोदों साव कंगनी मकई कुलथी सरसों राई अलसी तिल उर्द मूंग मांठ अरहर चना मटर मसूर कपास ऊख कुसुम बग़ैर को खेतियां हुआ करती हैं | और तरकारी भी आलू गोभी अदरख अरवी बंडा रतालू ज़मीकंद पयाज़ लहसन मूली गाजर शकरकंद बेगन तुरई ककड़ी खीरा भिंडी कटू कुम्हड़ा सेम वग़ैरः पैदा होती हैं ॥ चौपाये चोपाये वो कहलाते हैं । जो चार पांव से चलते हैं । इन में कोई सुमदार होता है यानी उसका पैर नीचे मे फटा नहीं होता जैसे घोड़ा। और कोई खुरवाला यानी जिसका पैर फटा हुआ होता है जेसे गाय भैंस और कोई पंजेदार जैसे शेर बिल्ली रीछ कुता " शेर देखा भेड़ो को उन कतर कर और फिर सूत कात कर उस के कैसे कैसे कम्बल ग़ालीचे और तरह तरह के ऊनी कपड़े बनाते हैं । हिमालय पार तिब्बत और तातार की बकरियों For Private and Personal Use Only
SR No.020894
Book TitleVidyankur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaja Shivprasad
PublisherRaja Shivprasad
Publication Year1886
Total Pages89
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy