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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ह विचारपोथी ( समर्थ रामदासस्वामी की नीर्चे की उक्तिको लक्ष्य करके यह विचार लिखा गया है : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामर्थ्य आहे चळवळ चें । जो जो करील तयाचें । परंतु तेथें भगवंताचें । अधिष्ठान पाहिजे || ) ६८६ ऋषियोंका दर्शन तत्त्ववेत्तात्रों का ज्ञान सन्तोंका अनुभव ६६० " आप रज्जु - सर्प के समान 'विवर्त' मानते हैं या 'सुवर्णकंकरण' के समान 'परिणाम' मानते हैं ?" "मैं 'सुवर्ण-कंकरण' के समान 'विवर्त' मानता हूं ।” ६६१ 'बुद्धि' - प्रामाण्य चाहिए, 'अहं' - प्रामाण्य नहीं । ६६२ स्नान करते समय 'सहस्रशीर्ष' कहने की प्रथा है । उस वक्त यह भावना करनी चाहिए कि हजारों जलबिन्दुनोंके रूपमें सहस्रशीर्ष परमात्मा हजारों हाथोंसे मुझे स्पर्श कर रहा है जिससे जीव-भाव धुल जायगा । .६६३ पिपीलिका उत्तम गुरु । विहंगम उत्तम शिष्य । .६६४ (१) एका अद्वैत जो एकसाधननिष्ठ होनेके कारण अन्य साधनकी कल्पना नहीं कर सकता । For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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