SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६ www.kobatirth.org विचारपोथी ६७४. कृष्णने गाय बचाई । बुद्धने बकरी बचानेका प्रयत्न किया । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७५ 'यथेच्छसि तथा कुरु' कहनेके बाद फिर 'मामेकं शरणं व्रज' है ही । स्वतन्त्रता संयमका वरण करे, इसमें स्वारस्य है । ६७६ भक्ति - नियत संयम । मुक्ति - स्वैर संयम | ६७७ वाद चार हैं : कर्म में अकर्म, ज्ञानका सगुण लक्षण है। अकर्म में कर्म, ज्ञानका निर्गुण लक्षण है । ६७८ (१) दंभवाद, (२) प्रज्ञानवाद, (३) भावार्थवाद, (४) यथार्थवाद | ६७६ मरते वक्त कंबलपर सुलाते हैं । जीवनमें यदि गरीबी न रही हो, तो कम से कम मरणमें तो रहने दो ! ६८० साम्राज्यवाद याने संपत्ति, सत्ता और संस्कृतिकी श्रासक्ति । ६८१ 'भक्त ऐसे जागा जे देहीं उदास' देहके प्रति उदासीन हैं, तुकाराम ) (भक्त ऐसोंको जानो जो हरएक प्रश्न के एक देह होती है और एक आत्मा । भक्त देहके प्रति स्वाभाविक रूपसे ही उदासीन रहता है । ६८२ सद्गुरु - जिनका 'अस्तित्व' श्रद्धेय है । चिद्गुरु - जिनका 'ज्ञान' परमार्थ- मंडलमें प्रतीत होता है । जगद्गुरु --- जिनका कार्य सबपर प्रकट है । For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy