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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिचास्पोशी ५३८ शिक्षण याने सत्-संगति । शिक्षणकी इससे भिन्न व्याख्या मैं नहीं कर सकता। ___ आश्रममें एक कुत्ता था। वह प्रार्थनाका घंटा बजते ही नियमितरूपसे प्रार्थनामें आया करता था। उसने हमें नियमधर्म सिखाया। जिस दिन वह मरा, उस दिन आश्रमवासियोंने एक जूनका उपवास रखा। . ५४० मेरे धर्म में उपासना ऐच्छिक है, और इसलिए अनिवार्य है। ममत्व-बुद्धिका मर्मस्थान यह है कि उसकी बदौलत मनुष्य अपनी सार्वभौम सत्ता गंवा बैठता है। ५४२ उपासना याने ईश्वरके निकट बैठना ; अर्थात् जहां बैठे हों वहां ईश्वरको लाना। ५४३ __ पहले संसार कैसा है यह देखना और फिर उसपरसे सिद्धांत कायम करना-यह वैज्ञानिक विचार-पद्धति है। समाधिमें सिद्धांत स्फुरित हुआ, अब संसार वैसा होनेके लिए बाध्य ही हैयह आध्यात्मिक निर्विचार पद्धति है। __ पुरुष दोपकके जैसा है। वीर्य तेलकी जगह है। प्रारण बत्ती, और प्रज्ञा ज्योति । 'दीपकाय नमोनमः' ! ५४५ साम्य कई हैं। पर उन सबमें ब्रह्मसाम्य अंतिम और श्रेष्ठ है। प्रह्लादने नव-विधा भक्ति बतलाई है। लेकिन भक्ति For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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