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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी - ४७५ अन्नैषणाका नियमन यज्ञका उद्देश्य है। ४७६ बुद्धि आत्मदर्शनका महाद्वार है। बुद्धि खोलते ही भीतर आत्मा खड़ा ही है। ४७७ देवताका स्वरूप प्राध्यात्मिक होता है । यथा : सूर्यदेवताप्ररणा, आपोदेवता-श्रद्धा, गृहदेवता-स्थिरता, वनदेवतास्वतन्त्रता। यह न समझकर श्रद्धापूर्वक पूजा करनेवालेको सामान्य चित्तशुद्धि प्राप्त होगी, परन्तु विशिष्ट चित्तशुद्धि देवताके स्वरूपज्ञानपर निर्भर है। ४७८ सिद्धि शुद्धिकी कसौटी । इस कसौटीमें कई जन्म निकल जाना भी संभव है। रोगीको मालूम होता है कि बुखार ज़ोर से चढ़ रहा है, फिर भी बुखार ठीक कितना है, इसका पता तो थर्मामीटर से ही चलता है। ४७६ .. वस्तुका आकार उसके अन्तिम किनारोंसे निश्चित होता है। गर्भवास और मरणकी दुःखमयता मानी जावे, तो संसारकी दुःखमयता अनायास ही सिद्ध हुई ; क्योंकि गर्भवास और मरण ही संसारके दो किनारे हैं। . ४८० जिस प्रकार आज हम सत्याग्रहका सामुदायिक प्रयोग करना चाहते हैं, उसी तरह संन्यासतत्त्वका सामुदायिक प्रयोग करना - संन्यासाश्रमका उद्देश्य है। व्यक्तिगत प्रयोगकी विशिष्ट उज्ज्वलता सामुदायिक प्रयोगमें न हो, फिर भी उसमें एक तरहकी व्यापक उज्ज्वलता होती है। For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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