SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी मुझे हिन्दू धर्म क्यों प्रिय है ?(१) असंख्य सत्पुरुष-वामदेव, बुद्धदेव, ज्ञानदेव आदि। (२) अनेक सामाजिक एवं वैयक्तिक संस्थाएं, संस्कार तथा आचार-यज्ञ, आश्रम, गोरक्षण' आदि । (३) शाश्वत नीतितत्त्व-अहिंसा, सत्य आदि । (४) सूक्ष्म तत्त्वविचार --भूतमात्रमें हरि आदि । (५) आत्मनिग्रहका वैज्ञानिक उपाय-योगविद्या । (६) जीवन और धर्मको एकरूपता-कर्मयोग । . (७) अनुभवसिद्ध साहित्य-उपनिषद्, गीता आदि । ईश्वर शुभ भी नहीं और अशुभ भी नहीं है । अथवा वह शुभ भी है और अशुभ भी है । अथवा वह केवल शुभ है । अस्वाद-व्रतमें प्रगति कैसे पहचाने ?-- . (१) प्रत्यक्ष स्वाद-संशोधन । (२) शारीरिक स्वास्थ्य-संशोधन । (३) कामक्रोधादि विकार-संशोधन । (४) अज्ञान-संशोधन । ध्यान षड्विध : (१) आत्म-परीक्षण (४) नामस्मरण (२) ईश्वर-चिन्तन (५) भगवल्लीलावगाहन (३) वाक्यार्थानुशीलन (६) सच्चरित्रावलोकन १२ मन्त्र 'राम-कृष्ण-हरि'। राम सत्। कृष्ण चित् । हरि आनन्द। मेरा नाम मरे । रामनाम जीये। मेरा कुछ भी न हो। सबकुछ कृष्णार्पण हो । मेरी इच्छा जाय । हरिकी इच्छा रहे । For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy