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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विचारपोथी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०१ उपयोगिता धर्म का शरीर है, चित्तशुद्धि आत्मा । ४०२ ज्ञानदेवके शब्दों में गीता-तत्त्व 'नित्य नूतन' है । जो नित्यनूतन, वही सनातन । ४०३ साधक संसारकी स्मारक शक्ति बढ़ानेके उपाय खोजे । ४०४ अर्जुन पूछता है : 'इच्छा न होने पर भी मनुष्य पाप किस कारण करता है ?" भगवान् उत्तर देते हैं : 'इच्छा रहती है इसलिए करता है ।' ४०५ वेद 'एकं सत्' कहता है, लेकिन साथ-साथ 'विप्रा बहुधा वदन्ति' भी कहता है । 'मूढा बहुधा वदन्ति', कहने को वह तैयार नहीं है। इसमें वेदी अविरोध-वृत्ति दिखाई देती है । ४०६ (१) चित्तशुद्धि, (२) देशसेवा, (३) विश्व - प्रेम, (४) देवपूजा । ४०७ 'तव्य' - भावना सात्विक मनका एक रोग है । ४०८ " तुमसे भोग नहीं छोड़े जाते, तो कम से कम भगवान् के नामपर भोगो !" "तुमसे भोग नहीं छोड़े जाते, तो कम-से-कम भगवान् के नामपर मत भोगो !” ४०६ देह —- तमस्, इन्द्रियां - रजस्, बुद्धि - सत्त्व; आत्मागुणातीत । For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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