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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org विचारपोथी अपना हुकम माननेवाला एक नौकर मिल गया । ज्ञानी पुरुषकी ऐसा बालवृत्ति होती है । इसीका नाम है 'नराणां च नराधिपः' । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० ईश्वर पृथक्करण - मंगल भाव । ३५६ नीतितत्त्वों का आधार जिसने ईश्वरपर रक्खा उसने गहरी नींव पर इमारत रची। ३६१ प्रकार याने विकारका स्फोट । ५.५. ३६२ गृहस्थ शिक्षक नहीं हो सकता ; क्योंकि वह अन्य कर्त्तव्योंसे बंधा हुआ और उच्च ध्येयके लिए भी अपूर्ण साबित होता है। संन्यासी आदर्श शिक्षक हो सकेगा, लेकिन संसारकी मालकियतका, विद्यार्थियोंके 'हाथका' नहीं। इसलिए वानप्रस्थ ही विद्यार्थियोंके हकका शिक्षक रह जाता है । ३६३ दो धर्मोंमें कभी भी झगड़ा नहीं होता । सभी धर्मोका अधर्म से झगड़ा है । ३६४ संसारमें केवल ईश्वरकी इच्छा है; और उसकी इच्छा है जिसकी इच्छा ईश्वरकी इच्छा में मिल गई है । ३६५ संत मोक्षस्पर्शी वैराग्य रखते हैं, इसलिए उनकी संगतिसे संसारको संसार-साधक ( व्यवहार - साधक) संयम प्राप्त होता है । सूर्य उष्णतासे जलता है, इसलिए हमारे शरीरमें ६८ अंश उष्णता रहती है । For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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