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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी फिरसे न होने देनेका संकल्प और उसके लिए ईश्वरकी प्रार्थना, ये तीन बातें ज़रूर होनी चाहिए। चिन्तनके वक्त संभव हो तो ध्रुव का दर्शन करें। ध्रुव निश्चयका देवता है। २८९ जप याने भीत्र न समानेवाले निदिध्यासका प्रकट वाचिक रूप-जपकी मेरी यह व्याख्या है। २८६ दैवको अनुकूल करनेके लिए कौनसे साधन हैं ? (१) प्रयत्न (२) प्रार्थना। २६० रातको मैं मौन रहता हूं। क्या इसी कारण अंधेरा मुझसे बात करता है ? वह कहता है, "मुझसे तेरा जन्म है। मुझमें ही तू लीन होनेवाला है। आज भी तुझपर मेरी ही सत्ता है।" २६१ नम्रताकी ऊंचाईका नाप नहीं। २६२ गुरु तीन प्रकारके होते हैं : (१) 'जैसा जिसका अधिकार वैसा' उपदेश करनेवाले । (२) उपदेशकी वृष्टि करनेवाले । (३) मौनसे उपदेश करनेवाले २६३ वेदार्थ स्पष्ट समझमें आता हो, घड़ी-भर समाधि लगती हो, नामस्मरणसे सात्त्विक भाव प्रकट होते हों तो भी क्या हया? जो आचरण में आवे वही सही। उत्तरदायित्वपूर्ण काम जबसे मुझे मिला तबसे मैं उत्तरदायित्वसे मुक्त हुआ। For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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