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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी 1. डबरेमें या समुद्रमें होनेवाले विवाह अच्छे नहीं होते। विवाहके लिए नदी चाहिए। प्रेमसे ही छाप ; अच्छी या बुरी, नीति अनीतिपर । १६२ ज्ञान भी ज्ञानगम्य है ; याने पहलेसे ही ज्ञान हो तो आगे ज्ञानकी प्राप्त होगी। असत्कर्मका सिर मार दिया जाय । सत्कर्मको जखमी किया जाय । सत्कर्मको जखमी करनेकी युक्तिका ही नाम है फलतयग । १६४ प्राप्ति से प्रयत्नका आनन्द विशेष है। ! आग्रह महत्त्वकी शक्ति है। उसे मामूली काममें खर्च कर देना ठीक नहीं। उन्मनीसे परेका स्वैर मन-यही सहजावस्था। केवल सवेरेका ही राम-प्रहर ? और बाकीके क्या हरामप्रहर हैं ? भक्तोंके लिए समस्त समय समान रूपसे पवित्र होना चाहिए। १६८ । अपने पहले हुई तपश्चर्याको न गंवाते हुए आगे कदम बढ़ाना सुधारकका काम है। अकरण, निषिद्ध, काम्यकर्म, फलाभिसंधि और अहंकार-- For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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