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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विचारपोथी आत्म-दर्शन मोक्षका आस्वाद लेना है । परमात्म-दर्शन मोक्षका पेट-भर भोजन करना है। पहली बातका अनुभव इसी देहमें हो सकता है, दूसरीका देहपातके अनन्तर । १२४ __हे गोपाल कृष्ण, मेरा अहंकार कालिया है। उसका सिर तू जब कुचलेगा तभी मुझे कालिया-मर्दनकी कथामें विश्वास होगा। १२५ संसार के तीन लिंग : अहंकार पुल्लिग, प्रासक्ति स्त्रीलिंग, असत्य नपुंसकलिंग । डूबनेवालेसे सहानुभूतिके माने उसके साथ डूबना नहीं है ; बल्कि खुद तैरकर उसको बचानेका प्रयत्न करना है। १२७ वृत्ति निर्भय करनेके लिए प्राण-जयके प्रयत्नका उपयोग हो सकता है। १२८ अर्जुनके रोम-रोमसे 'कृष्ण-कृष्ण' की एक ही ध्वनि निकलती थी। इस कारण लोगोंने उसका नाम कृष्ण रखा। गीताका श्रोता-बक्ता वही है। १२६ चार महावाक्योंमें एक-से-एक चढ़ती चार अद्वैत-भूमिकाएँ सूचित की हैं : प्रज्ञानं ब्रह्म-अद्वैत-ज्ञान । अयमात्मा ब्रह्म-ईश्वर-साक्षात्कार । अहं ब्रह्मास्मि-आत्मानुभव। तत् त्वमसि-~~-विश्वोद्धार । For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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