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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ www.kobatirth.org विचारपोथी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८७ जीने की इच्छा मृत्युका बीज है। जहां वह इच्छा गई, मृत्यु मरी । ८८ 'अहं ब्रह्मास्मि' में 'तत् त्वमसि' का निषेध नहीं है । दह ग्रहम् । सोऽहम् । नाहम् । ६० पहले ज्ञान, फिर कर्म और अन्तमें भक्ति -- यह मेरा अनुभव है। इससे भिन्न भी अनुभव हो सकता है । तीनों एकरूप हैं । ६१ व्यक्त के ज्ञानी साथीसे अव्यक्तका श्रद्धालु साथी श्रेष्ठ होता है । धर्मराज के साथ कुत्ता गया, पर अर्जुन रास्तेमें ही गिर पड़ा । ६२ सेवा पाससे, आदर दूरसे, ज्ञान भीतरसे । ६३ गंगा कभी गंदली होती है, कभी स्वच्छ होती है, पर हमेशा पवित्र होती है । आत्मा गंगाके समान सदा पवित्र है । उसकी पवित्रता उसके प्रखंड बहते रहनेपर आधार रखती है । ६४ राम मर्यादाभूमि | कृष्ण प्रेमसमुद्र । हरि, जो कुछ बाकी रहा वह — अनन्त आकाश | ६५ कृष्ण के जीते जी उद्धवसे उसका वियोग क्षरण भरके लिए भी सहा नहीं जाता था । परन्तु कृष्णके मरनेपर वह उसका For Private and Personal Use Only
SR No.020891
Book TitleVichar Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinoba, Kundar B Diwan
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1961
Total Pages107
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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