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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निरंशध्यानविश्रांतेर्मूकस्य मम मूनि ॥ कदा तार्यं करिष्यंति कुलायं वनघूर्णकाः ॥१॥ न वरमाकुलशास्त्रविचारणं न च वरं परकार्य विवेचनं ॥ न वरमयकथाक्रमवर्णनं स्थितिमुपैति हि यत्र सतां मनः ॥२॥ न वरमेकमहीतलराजता न च वरं विबुधामररूपता। न च वरं धरणीतलनागता स्थितिमुपैतिहि यत्र सतां मनः ३॥ विगतसर्वसमीहितकौतुकः समुपशांतहिताहित कल्पनः ॥ प्रकृतिसंव्यवहारसमाशयो भवति मुक्त मना पुरुषोत्तमः ॥४॥ आत्मानदी संयमतोयपूर्णा सत्यावहा धर्म तटा दयोर्मी ॥ तत्राभिषेकं कुरु पांडुपुत्र न शुद्धयते वारिणश्चांतरात्मा ॥ ५॥ आनंदमूलगुणपल्लवतत्वशाखं वेदांतपुष्पफलमोक्ष रसाद्धि पूर्णम् ॥ चतोविहंग हरितुगतलं विहाय संसारशुष्कविटपे वद किं रतोऽसि ॥६॥ __ १ कोइ पंडित अपने बुद्धिसे शास्त्रोंका अवलो. कन करके संशयाविष्ट होनेसे दुःखी हुवा हाथमे भेट लेकर ब्रह्मवित् वेदवक्ता सद्गुरुको साष्टांगः प्रणाम करके प्रार्थना करता भया ' हेनाथ सर्वशास्त्रोमें मोक्षप्रद शास्त्र कौन है जिसकामै आश्रयकरों For Private and Personal Use Only
SR No.020885
Book TitleVedant Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVigyananand Pandit
PublisherSarasvati Chapkhanu
Publication Year1837
Total Pages268
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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