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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२ । पारिभाषिकः । तदनुबन्धकग्रहणे इस पूर्व लिखित परिभाषा के अनुकूल अगा प्रत्यय के आश्रय कार्य है वह ण प्रत्यय को मान के न होना चाहिये तो ( काम स्ताकोल्ये ) इस सूत्र का यही प्रयोजन है कि तालोल्य अर्थ में ण प्रत्यय परे होता कमन् शब्द के टि भाग का लोप हो सो (नस्तद्धिते)सूत्र से नान्त भ संज्ञक अङ्ग के टिका लोप सिह ही है तो ताकील्य अर्थ में ( काम:) प्रयोग बन हो जाता फिर यह सूत्र व्यर्थ होकर इस परिभाषा का जापक है। ८६-ताच्छीलिकेणेऽण् कतानि भवन्ति ॥१०६।४। १७२ ॥ तकोल अर्थ में विहित ण प्रत्यय के परे अण प्रत्य याश्रित कार्य भी होते है इस से यह पाया कि ( अन् ) सूत्र से अण प्रत्यय के परे अवन्त को प्रकृतिभाव कहा है सो ताछोल्य अर्थ में ण प्रत्य य के परे अनन्त कर्मन् शब्द को भी प्राप्त था इसलिये ( कार्मस्ताकोल्ये ) सूत्र में टिलोपनिपातन सार्थक होगया यह स्वार्थ में चरितार्थ है ! अन्यत्र फल यह है कि (तुरागोलमस्याः सा चौरी, तपः शोलमस्याः सा तापसी इत्यादि प्रयोगों में ताकौलिक ण प्रत्ययान्तसे (टिड्ढाणज०) सूत्र में अपन्त से कहा डोप हो जाता है इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं । ७६ ॥ (दाण्डिनाय०) इस सूत्र में भ्रौणहत्य शब्द निपातन किया है उस से यही प्रयोजन है कि (भ्रणघ्नो भावः भ्रौणहत्यम्) यहां निपातन से तकारादेश होजावे सो जो ( हनस्तोऽचिसालोः) सूत्र से ध्यञ् प्रत्यय के परे हन् के नकार के तका. रादेश होजाता तो फिर निपातन करना व्यर्थ है इसलिये यह परिभाषा है । ७७-धातोः कार्यमच्यमानं तत्प्रत्यये भवति ॥प्र०७२।११४॥ जो धातु को कार्य कहा है वह उसी धातु से विहित प्रत्यय के परे हो अर्थात् धात को कार्य प्रातिपदिक से विहित तड़ित के परे नहो इससे हन् धातु को कहा तकारादेश भौणहत्य में प्रातिपदिक से विहित तद्धित व्यज के परे नहीं हो सकता। इसलिये भौणहत्य में तकारादेश निपातन करना सार्थक हुआ और अन्यत्र फल यह है कि (भ्रौणनः) यहां पण प्रत्ययके परे तकारादेश नहीं होता तथा (कंसपरिमृड्भ्याम्) यहां प्रातिपदिक से विहित विभक्ति के परे मृज् धातु को कही वृद्धि नहीं होती(रज्जुसृड्भ्याम्,देवग्भ्याम्)यहां झलादि अकित् विभक्ति के पर सुज् धातु को अम् प्रागम नहीं होता। इत्यादि अनेक प्रयोजन हैं॥७॥ ( सर्वके, विश्वके,उच्चकैः,नोचक:)यहां सर्वनाम और अव्ययसंज्ञा नहीं होनी चाहिये कोंकि सर्वादि में सर्व विश्व शब्द और अव्ययों में उच्चैस नीरैस् शब्द पढ़े हैं For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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