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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौवरः ॥ आशा | खलप्वि-आमा । यहाँ सकलवि खलप्पि सप्तम्यन्त स्वरितान्त शब्द है उन के यण से परे आकार अनुदात्त को स्वरित हो जाता है जैसे । स क व्यागा। रख लपव्याशा । इत्यादि ॥ ८४ ॥ ८५-एकादेश उदात्तेनोदात्तः ॥०॥८।२।५॥ उदात्त के साथ जो अनुदाप्त का एकादेश है वह भी उदात्त ही हो नाता है। जैसे । अग्नी। वायू । यहाँ अग्नि वायु शब्द अन्तोदात्त हैं। उन का अनु. दात्त विभक्ति के साथ एकादेश हुआहै । इसी प्रकार। वृक्षः । लक्षः। इत्यादि।८५॥ . ८६-स्वरितो वाऽनुदात्ते पदादौ । अ० ॥ ८।२। ६ ॥ नो उदात्त के साथ एकादेश है वह पदादि अनुदात्त के परे विकल्प करके 'खरित हो पक्ष में उदात्त हो । सु उत्थितः । सूतिय तः । सूस्थितः। वि-ईक्षतेवो क्षते । वौक्षते । इत्यादि ८६ ॥ इति श्रीमदयानन्दसरस्वतीनिर्मितः सौवरो ग्रन्थः समाप्तः ॥ संवत् १९३९ भाद्रशुक्ल १३ चन्द्रवार ॥ ART - - . . . म .., म .म ।.. For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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