SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ भूमिका ॥ ~--:00:-- सब उणादिगणस्थ शब्द इस वक्ष्यमाण एक सूत्र की विशेष व्याख्या में हैं: उणादयो बहुलम् ॥ ५० ॥३॥ ३ ॥१॥ वर्तमान काल में धातुओं से उणादि प्रत्यय बहुल करके होते हैं । भूतेऽपि दृश्यन्ते ॥ १० ॥ ३।३।२॥ और कहीं २ भूतकाल में भी इन का विधान दीख पड़ता है ॥ भविष्यति गम्यादयः ॥ अ० ॥ ३।३।३॥ और गमी आदि गणपटित वक्ष्यमाण शब्द भविष्यत्काल में ही होते हैं। उणादिप्रत्ययों के होने के लिये यह तीनों काल का नियम है । गम्यादि शब्द। गमी । आगामी । प्रस्थायी । प्रतिरोधी । प्रतिबोधी । प्रतियोधी । प्रतियोगी । प्रतियायी । आयायो । भावी । इन से अन्य शब्द भूत और वर्तमान अर्थों के बोधक होते हैं। अब जितनी प्रकृतियों में जितने उणादि प्रत्यय कहे हैं उतने ही जानना चाहिये वा कुछ विशेष इस लिये : बाहुलकं प्रकतेस्तनुदृष्टेः प्रायसमुच्चयनादपि तेषाम् । कार्यसशेषविधेश्च तदुक्तं नैगमरूढिभवं हि सुसाधु ॥ १ ॥ नाम च धातुजमाह निरुक्त व्याकरणे शकटस्य च तोकम् । यन्न पदार्थविशेषसमुत्थं प्रत्ययतः प्रकृतेश्चतदूह्यम् ॥ २ ॥ संज्ञासु धातुरूपाणि प्रत्ययाश्च ततः परे । कार्यादिद्यादनूबन्धमेतच्छास्त्रमुगादिषु ॥ ३॥ महाभाष्ये ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020882
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1892
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy