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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अथ सामासिकभूमिका ॥ समास उसे कहते हैं कि जिस में अनेक पदों को एकपद में जोड़ देना होता है । अनेक पद मिल के एक पद हो जाता है तब एक पद और एक स्वर होते हैं, समास विद्या के जाने विना कुछ विदित नहीं हो सकता । इसलिये समास विद्या विश्य जाननी चाहिये || समास चार प्रकार का होता है । एक अव्ययीभाव, दूसरा तत्पुरुष, तीसरा बहुब्रीहि और चौथा द्वन्द्व । अव्ययी - ब में पूर्वपदार्थ, तत्पुरुष में उत्तरपदार्थ, बहुब्रीहि में अन्य पदार्थ और द्वन्द्व में उभय अर्थात् सब पदों के अर्थ प्रधान रहते हैं । जिसका अर्थ मुख्य हो वही प्रधान कहाता है । अव्ययीभाव के दो भेद होते हैं । एक पूर्वपदाव्ययीभाव दूसरा उत्तरपदाव्ययीभाव ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्पुरुष नव प्रकार का होता है ॥ द्वितीया तत्पुरुष । तृतीया तत्पुरुष । चतुर्थी त० । पञ्चमी त० । षष्ठी त• ॥ सप्तमी त । द्विगु नञ् और कर्मधारय ॥ बहुब्रीहि दो प्रकार का है । एक तद्गुणसंविज्ञान दूसरा अतद्गुणसंविज्ञान || इन्द्र भी तीन प्रकार का होता है ॥ एक इतरेतरयोग दूसरा समाहार और तीसरा एकशेष । इस प्रकार से ४ समासों के १६ ( सोलह ) भेद समझने योग्य हैं । और इन में से अव्ययीभाव तत्पुरुष और बहुब्रीहि लुक् और अलुक् भेद से दो २ प्रकार के होते हैं । इन के उदाहरण आगे For Private and Personal Use Only
SR No.020881
Book TitleVedang Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayanand Sarasvati Swami
PublisherDayanand Sarasvati Swami
Publication Year1909
Total Pages77
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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